संस्मरण — वो सफ़र // डॉ रश्मि अग्रवाल

बात उन दिनों की है,जब दोनों बेटियाँ बहुत छोटी थीं । बड़ी बेटी 7 साल की और छोटी 5 साल की थी । दोनों बेटियों को पापा से बेहद लगाव था । बेटियों के स्कूल में गर्मी की छुट्टी हो गई थी ।मैंने अपने मायके बनारस जाने का प्रोग्राम बनाया और हम चारों बनारस जाने के लिए ट्रेन में बैठ गए ।काफी देर बाद एक स्टेशन आने पर पतिदेव ने कहा ,बच्चों के लिए कुछ खाने का सामान और पानी की बोतल ले कर आता हूँ ।बेटियों ने मना किया कि पापा ! हमें कुछ नहीं चाहिए । आप मत जाइए ।आप हमारे पास ही रहिए ।इन्होंने समझाया, बेटा ! तुरंत ले कर सामान आ जाऊँगा और ये कह कर ट्रेन से उतर गए ।
बेटियाँ बार-बार पूछ रही थीं । मम्मी ! पापा कब आएँगे ?पापा अभी तक नहीं आए ।मैंने कहा, पापा आ जाएँगे तुम लोग घबड़ाओ मत ।पर बेटियों की निगाह दरवाजे पर ही टिकी हुई थी । तभी ट्रेन ने सिग्नल दे कर चलना शुरू कर दिया ।अब तो दोनों बेटियाँ बेहद घबड़ा गई और जोर-जोर से ये कहते रोने लगीं, कि मेरे पापा छूट गए ।अब हमसे वो कैसे मिलेंगे ।
मम्मी ! पापा को बुलाओ ।मैं भी परेशान थी पर सोचा किसी न किसी डिब्बे में चढ़ गए होंगे। शायद अगले स्टेशन पर आ जाएँगे । कंपार्टमेन्ट के सारे लोग बेटियों को समझा रहे थे ।पर बेटियाँ कहाँ चुप रहने वाली ।अनवरत उन दोनों की आँखों से आँसू बहते रहे ।तभी अगला स्टेशन आ गया और ये आते हुए दिखाई दिए ।मैंने कहा देखो, तुम्हारे पापा आ रहे हैं ।दोनों बेटियाँ लपक कर पापा की गोद में चढ़ गई ।पापा अब आप कभी भी ट्रेन से कुछ भी लेने नहीं उतरेंगे ।हमें कुछ भी नहीं चाहिए हमें बस अपने पापा चाहिए ।आप मुझसे वादा कीजिए कि आप अब कभी ऐसा नहीं करेंगे ।पापा ने कहा, ठीक है बेटा तुम लोग धैर्य रखो ।देखो मैं तो आ गया हूँ न । अब रोना बंद करो । मैं पीछे वाले डब्बे में चढ़ गया था और गाड़ी के रुकते ही तुम्हारे पास आ गया ।
मैं आँखों में आँसू भरे पापा और बेटी का प्यार देख रही थी । मन में सुकून था कि पतिदेव आ गए ।सब लोगों ने इनसे कहा, आपकी बेटियाँ आपको बहुत चाहती हैं ।दोनों लगातार रोती रही हैं ।बहुत ही ज्यादा प्यार करती हैं आपसे । पतिदेव ने दोनों बेटियों को गले से लगा लिया । #वो_सफ़र वो लम्हाँ मैं कभी नहीं भूल सकती ।
डॉ० रश्मि अग्रवाल ‘रत्न’