सफलता की सीढ़ी– संस्मरण — प्रेममणी एसलीना

मेरी यह रचना मेरी बहन जोसबिन कुमार जी और संघर्ष से जूझ रही बालक,बालिकाओं और स्त्री पुरुषों को समर्पित है।
उस दिन कार से उतरते अपनी बहन जोसबिन कुमार को देख मेरा मन बहुत हर्षित हुआ।
सबसे पहली बार ऐसी ही खुशी बल्कि उससे भी अधिक थी जब बहन ने पेप खरीदा था,
हमारे पिता भी हमारे साथ गए थे सच में ये गर्व करने का दिन था
आज पहली बार बहन के पेमेंट से 11000रुपए एटीएम से निकाला और किश्त में पेप खरीदा था।
बहन के पास आज खुद का घर भी है,इसके अलावा वह पिता के घर रहती और घर की सारी जिम्मेदारी उठाती है,साथ ही अपने साथ पूरे परिवार की जरुरते पूरी करती है।
हालांकि पिता पेंशनधारी है फिर भी बहन अपनी कमाई का बहुत हिस्सा घर के हर छोटे बड़े काम में लगाती है,ऐसा कहना उचित होगा की वह हमारे लिए भाई से बढ़कर करती और पिता के लिए दाहिना हाथ की तरह है।
लेकिन ये ऊंचाई चढ़ते वक्त उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा,
जोसबीन पढ़ने में बचपन से होशियार थी
मुझे याद है हम परीक्षा की तैयारी एक कमरे में करते थे पूरी लगन से वो पढ़ती थी,उन्होंने रिपीटेक्स पूरी पढ़ डाली ,अपनी कक्षा की पूरी बुक भी रट डालती थी,
किंतु एक समय हमारे घर के हालात कुछ ज्यादा तंग थे मेरे भाई अगस्टिन,बहन सरिता और जोस्बिन तीनो पढ़ाई में ध्यान नही दे पाए घर का माहौल बहुत खराब था
परिस्थितिवश और माहौल न मिलने के कारण वे डगमगा गए इसलिए वे फेल होते रहे,
बहन जोसबिन बड़े पिता के घर रहती थी नौवी कक्षा में वो वही थी तब वह बहुत छोटी थी माता पिता से दूर,उस साल भी वो असफल रही।
लेकिन इसके बाद उन्होंने पीछे पलटकर कभी नही देखा वो घर वापस आई पढ़ाई जारी रखी लगातार प्रयत्न करती रही,
फिर भी फीस भरने को पैसे नहीं थे ग्यारहवीं कुछ दिन बाद वे स्कूल ही नही गई,
इसके बाद उन्होंने प्राइवेट पढ़ाई की बारहवीं,फिर डॉक्टरी पढ़ी ,अंग्रेजी पढ़ने में उन्हें बहुत मुश्किल होती थी,
हमने उसे समझाया उनके मित्रो सहेलियों ने उनकी मदद की,आज भी स्थिति उतनी अच्छी नही थी,
उस पढ़ाई को लोग अच्छा नही कह रहे थे किंतु मैने कहा पढ़ाई कभी व्यर्थ नहीं जाती
तुम पढ़ो लोगो को बोलने दो ।
बाद में वो बिलासपुर में बतौर नर्स काम करती रही,वही से उन्होंने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का काम इंटरव्यू दिया और पास हुई उनको ये जॉब मिल गई।
और पोस्टिंग भी अपने ही शहर में
अब तो उन्होंने अपनी मंजिल पा ली थी
उनका पेमेंट भी काफी अच्छा था उन्होंने घर का सारा कर्ज दो तीन बार चुकाया हम सब की शादी घर चलाने सब में मदद करती रही आज की तरह।
उनकी शादी कामयाब नही रही वे रोते गाते कैसे भी आगे बढ़ी
उनका काम चला गया
कई बार काम छूटता रहा कई बार टूटती लेकिन फिर पूरी हिम्मत से उठ जाती
साथ ही उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की, हर साल किसी विषय की परीक्षा देती,अभी अभी उन्होंने पैरामेडिकल किया।
काम के बोझ और थकान के वाबजूद वह हर साल पास होती।
कई कोर्स उन्होंने किए,डिग्रिया ली अभी भी उनके पढ़ने की इच्छा बलवती है।
उनका संघर्ष बड़ा भयानक रहा लेकिन वो आज भी हमारे लिए गर्व का कारण है।
उन्होंने सिर्फ अपना नही लेकिन पूरे परिवार और परिचितों की भी मदद की कईयों को आगे भी बढ़ाया
आज भी करती है।
और आज भी सपने देखती और उन्हें पूरा करने का प्रयत्न करती है।
आज उन्हे किसी भी बातो की कमी नही,
इसके लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी खुद को मजबूत बनाया ,वे जोखिम लेना जानती है सबकी मदद करती है।
मैं इस संस्मरण के द्वारा यह संदेश देना चाहती हूं की
वक्त जैसा भी हो हमे कभी हिम्मत नहीं हारनी
चाहिए,
किसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपना
सौ प्रतिशत जरूर देना चाहिए,
सफलता मुश्किल हो सकती है नामुमकिन नही
इसलिए हमेशा सकारात्मक रहिए,अपने सपनो के लिए पूरे मेहनत ,लगन,धैर्य,और साहस से आगे बढ़ा कीजिए।
प्रेममणी एसलीना सिमरन
नागपुर महाराष्ट्र