टिप्पणी — लता शर्मा

टिप्पणी अर्थात प्रतिक्रया किसी आलेख, कविता ,कहानी,वस्तु,किसी के रूप, चाल-चलन
वेश भूषा आदि पर दी जाने वाली, अपने समझ अनुसार उस विषेश पर हमारे द्वारा कही गई बात।
जिसे सुनकर खुशी, नाराजगी,कोफ्त,हंसी आदी भाव उत्पन्न होते हैं।
आजकल बहुत से साहित्य मंचों का संचालन फेसबुक, वाट्सअप दोनों में बहुत से लोगों द्वारा हो रहा है जिससे नवांकुर,मंझे हुए रचनाकर अपने भाव उद्गार मन में दबा न रखें मुखर हो लेखनी चलाई जाए ,बदले वाह वाही, डिजिटल सम्मान पत्र विषयानुगत ये साहित्यकारों का हौसला उमंग बनाए रखें,जो उचित है, ऐसे करने सै लेखकों का आत्मविश्वास, मनोबल बढ़ता है।आपस में अच्छी अच्छी प्रतिक्रिया करके लेखक गण भी आपस मे एक दुसरे का उत्साहवर्धन करते हैं। बिना किसी से मिले ,जाने भी साहित्य मंच साहित्य परिवार बन जाते हैं।
किन्तु…. कभी कभी ऐसा भी होता है बूरी मानसिकता के लोग किसी महिला रचनाकार को
भद्दी टिप्पणी कर, अभद्रता की सीमा भी पार कर जाते हैं जो उसकी गन्दी मानसिकता,ओछेपन को दर्शाता है।जो इस तरह के गंदे भाव , विचार इतनी आसानी से कर जाते हैं। ऐसे मानसिक रोगियों से महिला साहित्यकारों को केवल आघात ही नहीं अस्मिता पर भी प्रश्नचिन्ह लगते हैं।
ताज्जुब होता है जिस औरत के खून ने तुम्हें सींचा, ममता दी,बहन का प्यार दुलार दिया जिन अंगों का तुम्हारे वजूद पर ,तन पर अहसान है उन्हीं पर गंदी टिप्पणी,मन को वितृष्णा से भर देने वाले संकेत चिन्ह?शर्म , मर्यादा नहीं रहती उनके घरों में मां बहन निर्वस्त्र फिरते हैं जिन्हें देख तुम्हारे मन में ऐसे ही विचार आती है वे ऐसे ही मां बहनों से बर्ताव,भाषा संवाद करते हों..?
लता शर्मा त्रिशा