वादा… अनीता चतुर्वेदी

सिया को प्रेम हो गया था, एक अनकही मोहब्बत, आरव से। लेकिन वह अपने मन की बात कभी कह नहीं पाई। आरव भी उससे गहरे भावनात्मक लगाव रखता था, पर उसकी नियति अलग थी। एक दिन आरव ने उससे कहा था—
“सुनो, मैं तुम्हें फिर मिलूंगा। कब, कहाँ, किस समय ये नहीं जानता, पर मिलूंगा एक दिन… शायद तुम्हारी हल्दी में घुला चंदन बनकर, तुम्हारे हाथों की मेंहदी बनकर, तुम्हारी नाक की नथनी का वो छोटा सा नग बनकर, जो तुम्हारे होठों पर आएगा। मैं मिलूंगा तुम्हारी हर सांस में।”
उसके बाद आरव कहीं चला गया। सिया ने बहुत तलाशा, पर वह नहीं मिला। दिन, महीने, साल बीतते गए, लेकिन आरव की बातें उसके दिल में गूँजती रहीं। उसकी शादी किसी और से न हो जाए, यह सोचकर उसका दिल घबराता था।
समय बीता, और उसके माता-पिता ने उसके विवाह की तैयारियाँ शुरू कर दीं। वह अनमनी थी, पर घरवालों की खुशी के लिए उसने हामी भर दी।
हल्दी की रस्म में जब उसकी सहेलियों ने उसे चंदन लगाया, तो उसे आरव के शब्द याद आए। मेंहदी रचाने बैठी, तो उसकी आँखों में नमी आ गई। और जब शादी के दिन उसने नथ पहनी, तो उसे फिर वही शब्द गूंजते सुनाई दिए।
जब वरमाला का समय आया, तो उसने घूंघट से दूल्हे की झलक देखी— यह तो आरव था!
उसकी आँखें हैरानी से भर गईं। आरव मुस्कुराया और धीमे से बोला, “मैंने कहा था न, मैं फिर मिलूंगा!”
सिया की आँखों में खुशी के आँसू छलक पड़े। उसकी प्रेम कहानी पूरी हो चुकी थी, नियति ने उन्हें फिर से मिला दिया था। वरमाला डालते समय उसने धीरे से पूछा, “इतने साल कहाँ थे?”
आरव ने मुस्कुराकर कहा, “बस तुम्हारे भाग्य में अपना नाम लिखे जाने का इंतजार कर रहा था!”
अनीता चतुर्वेदी