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वह बचपन के खेल — भूमिका शर्मा

 

बचपन की बात याद है मुझे।वह इन्तजार कब होगी स्कूल की छूट्टी।कब खेलेंगे हम बस खेल ।
मेरे घर के बाहर की वह छोटी सी जगह। जहाँ था जिसे हम कहते पेरू वह जामफल का पेड़। वहाँ खेलते वह छुप्पन -छुपाई,रूमाल पानी-डोंगरायला आग लागली-पडा पडा पडा ।ऐसे थे वह बचपन के खेल ।
छुटियों में निकलते वह किताबों के गत्ते।बनाते हम उसके घर।देखते किसने बनाया बड़ा घर उस गत्ते से।ऐसे अनोखे खेल।
दिपावली में अपने घर के बरामदे में खेल-खेल में किला बनाना और खिलौनो से राजदरबार शिवाजी का बनाना।ऐसे अनोखे खेल।
मुझे याद है मेरा बचपन। छोटे-छोटे बर्तन के खिलौने हर दिपावली पर अपने पापा मम्मी से मंगवाना मुझे बहुत पसंद रहा था। उससे खेलते-खेलते बडे हो गये हम।
टीचर की नकल करके।एक लकडी हाथ में। बचपन में बच्चे नहीं थे सामने।पता नहीं उस खेल में सामने कोई नहीं था सामने।वह छोटा सा रोलिंग बोर्ड था।वह खेल था बचपन का।वह बचपन के खेल

बचपन की बात याद है मुझे।वह इन्तजार कब होगी स्कूल की छूट्टी।कब खेलेंगे हम बस खेल ।
मेरे घर के बाहर की वह छोटी सी जगह। जहाँ था जिसे हम कहते पेरू वह जामफल का पेड़। वहाँ खेलते वह छुप्पन -छुपाई,रूमाल पानी-डोंगरायला आग लागली-पडा पडा पडा ।ऐसे थे वह बचपन के खेल ।
छुटियों में निकलते वह किताबों के गत्ते।बनाते हम उसके घर।देखते किसने बनाया बड़ा घर उस गत्ते से।ऐसे अनोखे खेल।
दिपावली में अपने घर के बरामदे में खेल-खेल में किला बनाना और खिलौनो से राजदरबार शिवाजी का बनाना।ऐसे अनोखे खेल।
मुझे याद है मेरा बचपन। छोटे-छोटे बर्तन के खिलौने हर दिपावली पर अपने पापा मम्मी से मंगवाना मुझे बहुत पसंद रहा था। उससे खेलते-खेलते बडे हो गये हम।
टीचर की नकल करके।एक लकडी हाथ में। बचपन में बच्चे नहीं थे सामने।पता नहीं उस खेल में सामने कोई नहीं था सामने।वह छोटा सा रोलिंग बोर्ड था।वह खेल था बचपन का।
ऐसे अनोखे खेल आज हकीकत सच्चाई की बन गया।वह बचपन के खेल जीने की सीख दे गये।
यह बचपन के अनोखे खेल..

ऐसे अनोखे खेल आज हकीकत सच्चाई की बन गया।वह बचपन के खेल जीने की सीख दे गये।
यह बचपन के अनोखे खेल..

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