विनोद — लता शर्मा

विनोद हाँ यही नाम था उसका औसत कद का वह लड़का मेरे साथ स्कूल में पढ़ता था उसका गाँव और मेरा गाँव पास पास होने से स्कूल आते जाते हम अक्सर मिल जाते मैं विनोदी स्वभाव की थी तो उसे किसी न किसी बात पर छेड़ती रहती थी वह बिना गुस्सा किए हंस दिया करता। कपड़े वह दो तीन ही पहनता था वह भी हाफ पेंट उसपर भी मैं उसे चिढ़ाती मुझे उसके घर के हालात मालू नहीं था।
एक दिन हम सभी सहेलियां उसके गांव से होकर एक अन्य सहेली के गांव जा रहे थे ,खेत में विनोद को बेर तोड़ते देख हम सब उसके पास जा पहुंचे उससे बेर देने को कहा पर वह अपने पेंट के पीछे दोनों हाथ रखे लज्जित सा खड़ा रहा मैंने बार बार कहा बेर तोड़कर दे पर वह खड़ा ही रहा फिर हमारे तरफ आगे किए किए ही जाने लगा मैं दौड़कर बेर जेब में ले भाग रहा कह जा पकड़ा,तब …
उसके पेंट दोनों तरफ फटे थे जिसे उसने हाथों से छिपा रखा था वह बहुत शर्मिंदा हुआ और मुझे बहुत अफसोस मेरे मजाकिया स्वभाव ने उसे सबके सामने लज्जित कर दिया था।
तब मुझे समझ आया अति चुलबुला पन भी कितना गलत परिणाम दे सकता है। हालांकि विनोद ने मुझसे गुस्सा नहीं किया दो चार दिन नज़रें बचाता रहा फिर मेरे माफी मांगने पर सब सामान्य हो गया। मैट्रिक के बाद मैं दुसरे शहर वह दुसरे।आज वह भिलाई स्पात में अच्छे पद पर नौकरी करता है।शादी के बाद एक बार मिला अपने घर ले गया बीबी से मिलवाया ।ऐसा सुलझा हुआ था विनोद।
लता शर्मा त्रिशा