यह अप्रत्याशित था.– विधा लघु कथा — डॉ संजीदा ख़ानम

बात उस वक्त की जब में डॉ संजीदा खानम शाहीन लगातार अपनी पढ़ाई पर फोकस कर रही थी ।
मुझे कुछ करना था जिंदगी में और
कुछ करना आसान तो है नहीं ।
बहुत क्रांति करनी पड़ती है, तब जाकर परिवार लोग समाज दुनिया में अपना स्थान सर्वोच्च कर पाते। घर में बात होती पढ़ाई छुड़ा दो लड़कियों को तो वैसे भी आगे जाकर चूल्हा चौका करना होता क्या पढ़ना ।
लेकिन चुनौतियों से क्या घबराना लक्ष्य साधा है कुछ करना सफलता पाना फिर घबराना क्या ।मैने साहित्य गोष्ठियों में भाग लेना शुरू किया पढ़ाई पूरी की मेहनत की ख़ुद कमाया और कई मंचों से जुड़ी और साहित्य को समर्पित 300 मंचों पर अध्यक्षता, समीक्षा ,संचालन ,मुख्य वक्ता, विशिष्ट अतिथि, मुख्य अतिथि,बनी ।अनेकों मंचों पर काव्य पाठ ऑनलाइन ,ऑफलाइन करती हूं।
और एक्यूप्रेशर थेरेपिस्ट का काम भी करती हूं ।
3 बुक लिख चुकी । 200 सांझा संकलन ने छपी ।
और इस तरह लोगो की बातों को मैने गलत साबित किया।
आज सफल लेखिका में अपनी पहचान रखती हूं।
ये सब होना अप्रत्याशित ही है ।
डॉ संजीदा खानम शाहीन