बही संस्कारी – खोई खुद्दारी — एन सी खंडेलवाल

पोते ने मुझसे कहा दद्दू आप आज के वक्त से बहुत पीछे हो, आप को कुछ भी चलाना नहीं आता ना कंप्यूटर, मोबाइल, कार, पप्पजी, गप्जी ना ऐप देखना, ना कुछ अपलोड करना। आप अपना समय कैसे काटते या बिताते थे।
दादा जी ने बच्चे को जवाब दिया वो आप भी सुनें: सुबह भोर में उठ जाता, चींटियों से लेकर पशु, पक्षियों को खाना खिला सैर कर आता, रास्ते में से ताजी सब्जियां, अमियां भी ले आता, बच्चे बना कर रेल खेलते खेल, बढ़ों के पैर छुना, गुरु के आने से पहले पढ़ाई का बिछाते बिछौना, इसलिए मुझे ऐप नहीं आता।
दादी का मथानी चलाना, मक्खन बनाना, चक्की चला आता बनाना, चूल्हे के सम्मुख बैठ सबका एक साथ खाना, दादी दादा, नानी नाना, मौसी, बुआ बहन और भाई, इन्हीं के साथ हमने जीवन की ऐप और अपलोड पाई। गुल्ली डंडा से लेकर साइकिल का पहिया था हमारा खेलने का फंडा। सीने पे गोली खाना था खेल, आजादी से किया हमने मेल। हमीं ने आजादी दिलाई तभी तुम्हारी पीढ़ी आज सांस ले पाई।
आज की युवा पीढ़ी ने सब……………?
*बही संस्कारी*
*खोई खुद्दारी*
इतिश्री!
*इंजीनियर एन सी खंडेलवाल*