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आज कल पूजा पाठ करना (लेख) — अमृत बिसारिया

 

अपनी सामाजिक छवि के लिए पूजा पाठ और मंदिर जाने की एक होड़ सी लग गई है। त्योहारों में, पूजा अर्चना करते समय और भक्तिभाव के वस्त्रों से सुसज्जित होकर, फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डालते हैं। यह भक्तिभाव कहाँ है? यह तो दिखावा है, यह आस्था नहीं है ऊपरी आवरण है।
ऐसी भावों और ऐसे विचारों में सहमत होने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है। यदि हम मन से पूजा अर्चन नहीं करते हैं, भगवान के चरणों में अपनी श्रद्धा नहीं अर्पित करते हैं तो इस दिखावे से क्या फायदा। यह भक्तिभाव आपके अंतर्मन से, आपकी नीयत से और आपकी श्रद्धा से ही सम्पन्न होता है।
यह भी सच है की इस दिखावे को करके लोग अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और पहचान को बनाने की कोशिश करते हैं जो कि नगण्य है यह न तो आत्मिक शांति और ना ही ईश्वर से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त करता है।
भक्ति व्यक्तिगत भावना है न कि सार्वजनिक दिखावा। यदि आप सच्चे मन से श्रद्धा और भक्ति रखते हैं तो वह आपके कर्मों और विचारों द्वारा प्रदर्शित होता है और आत्म विकास का साधन बनता है।
छोड़िये ना दिखावा क्या जरूरत है इसकी मन कर्म वचन से श्रद्धा और भक्ति अपनाएं तो मन को भी शांति मिलती है और मन खुश होता, जिससे दिमाग को तृप्ति मिलती है।
यह भी सच है कि कुछ लोग तो मन और श्रद्धा से मंदिर जाते हैं, पूजा अर्चना करते हैं, पर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो केवल दिखावे और समाज में अपनी छवि बनाने के लिए मंदिर जाते है।

अमृत बिसारिया
दुबई

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