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आलेख—ड्रम , मुस्कान और सोशल मीडिया –मैत्रेयी त्रिपाठी

 

बुरायी कहीं भी किसी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं है,चाहे वह स्त्री करे या पुरुष।
प्रकृति ने इस सुंदर उपवन में हमे पौध बनाकर सींचा है,ताकी हम पुष्प खिलाकर बगिया महकाये हाँ कुछ पौधे काँटेदार होते है,वृक्ष भी बहुत से काँटेदार है,परंतु अब ज़्यादा जंगली और ख़ूँख़ार उग रहें हैं ।
खैर आते है मुद्दे की बात पर—ड्रम -यह तो हास्य का विषय बन गया है,वस्तु है आप अपने ढंग से उपयोग कर सकते हैं,उसे तकलीफ़ नहीं होती ,पर हम जब देखते है तब हमें लोगो की सोच से घृणा होती है,ड्रम ने तो कहा नहीं होगा कि मुझे इस घृणित कार्य के लिये उपयोग करो ।
मुस्कान-एक पथभ्रष्ट नशे की आदी औरत जिसे किसी तरह का भय नहीं कुछ भी कर गुजरने से संकोच नहीं ।

सोशल मीडिया-सस्ता नशा,जिसका सेवन मैं आप और सभी कर रहें है,किसी को अपनी हद पता है,किसी को पचता नहीं है ,सारा रायता यहीं फैलाना है,उन्हें लगता है यहाँ तो लोग बड़े बड़े कांड कर रहे हैं,हम तो ताज़ातरीन हुये कांड पर नमक मिर्च चाट मसाला डाल रहे हैं, भले ही वह हमारे भारतीय परिवेश को खोखला बताने की चेस्टा हो ,मानवता पर वैमनस्यता हावी हो रही है यह ना दिखा कर सिर्फ एक वर्ग को घसीटना, उस पर टीका टिप्पणी करना ,और ऐसा विश्लेषण करना कि पूरी मानवता बस असहिष्णु हो गयी है ।

सामाजिक ढांचा महत्वपूर्ण है, समाज हमसे और आपसे ही तो बनता है, मानवता जिसका आधार है, तब हम क्यों विस्मृत कर देते हैं कि बुरे कर्म करने वाले से ज़्यादा बुरा उसके कर्मों का प्रचार करना होता हैं, नहीं बाँटना चाहिए हमे अमानवियता को स्त्री पुरुष में बल्कि जो मूल जड़ है, नशा ,भटकती पथभ्रष्ट होती पीढ़ी गर्त में जाते सामाजिक मूल्यों का विश्लेषण करना चाहियें।।
मैत्रेयी त्रिपाठी
स्वरचित

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