आलेख– मैत्रेयी त्रिपाठी

भगवा के विरोध में, कब भगवान का विरोध कर बैठे पता ही नहीं चला ।
ख़ुद को समाज का पैरोकार मानते थे,कब ख़ुद को
बड़ा साहित्यकार समझ बैठे और इंसानियत को भी मापने लगे पता ही नहीं चला ।
और सच्चाई देखी ही नही
भगवा तो भगवान के आगे का तीन शब्द है, और हमने न अर्थात् नकार को छोड़कर भग वस्त्र ओढ़ा था । उसमे भी तुमने इतनी कमियाँ गिना दी ।
छोड़ो तुमसे क्या ही कहना,तुम तो नास्तिक हो ,
पर न सें ही एक प्यारा शब्द होता हैं -नाशुक्रे
-नामुराद
हिंदी तो सबको प्यार करती है ,भारत भूमि की तरह ।
यह मौसी के शब्द हैं ।
याद तो होगा ही—भगवा आतंकवाद
भारत अगर यह मानता तो- अन्य धर्मो की बढ़ती जनसंख्या चीख कर गवाही ना दे रही होती ।
मेरे माधव को मुरली बड़ी प्रिय थी ।
पर अपनों की रक्षा के लिये चक्र उठाया था ।
आप मानो या ना मानो ,जो मरे है कश्मीर में उनके साथ हमारी हिंदू अस्मिता भी मरी है , पर हम किसी को नहीं मारेंगे ।
पर जब आत्मा मर ही गयी तो शरीर की क्या गणना , और जब इंसानियत मर ही गयी ,तो डर कैसा ।
बाक़ी राजनीति तो माया है ,
और माया महा ठगिनी हम जानी ।।
मैत्रेयी त्रिपाठी
स्वरचित