आलेख- नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व — डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

नवरात्रि पावन पर्व, सनातनी धर्म,परंपरागत त्योहार बड़े धूमधाम उल्लास के साथ मनाया जाता है।
आठ दिन तक लगातार पूजा, अर्चना विधिवत माता के नाम के अनुरूप की जाती है।
नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है, जो कि अष्टमी को व्रत रख करके कन्याओं को चरण प्रक्षालन, करके उनके पैरों को पोछकर, माथे पर तिलक लगाकर चरण स्पर्श करके आसन पर बैठा करके उनका भोजन खिलाया जाता है।
पूजनीय होती है बेटियां और वंदना करने योग्य।
कन्या पूजन और कन्या भोजन की आयु 2 वर्ष से लेकरके 10 वर्ष तक की कन्याएं होती हैं। छोटी-छोटी बेटियों को खाना खिला करके उनका आदर सम्मान मान करके उनको उपहार सामग्री भेंट की जाती है।
हिंदू धर्म के अनुसार बेटियों को देवियों का रूप, स्वरूप प्रदान किया गया है। बेटियों को हमेशा आज भी सभी वृद्धजन , देवी रूप मानते। हमारे समाज में बेटी का जन्म होता है तो बोलते हैं लक्ष्मी आ गई ऐसा हिंदू धर्म में आस्था और विश्वास है बेटियों के प्रति।
क्योंकि द्वापर युग में और त्रेता युग में रावण ने अन्याय किया सीता के प्रति दुर्योधन ने अन्याय किया द्रोपदी के प्रति,
बेटियों का तिरस्कार आज भी लोग अनजाने में और जानकारी न होने के कारण अधिकांश लोग करते हैं।
समाज में देश में, राष्ट्र में ,पड़ोस में ,हर जगह बेटियों को हर घर में परिवार में, मान- सम्मान मिलना चाहिए। लड़कों की तरह घर से बाहर निकलने की, शिक्षा की, नई जागृति की चेतना लाने के भरपूर अवसर प्राप्त होना चाहिए, कि वह भी अपनी विचार अभिव्यक्ति प्रकट कर सकें ,और मन की बात बेझिझक कहसकें।
बेटियों का शादी के बाद उनके ससुराल में उनका मान सम्मान मिलना चाहिए। अत्याचार , शोषण, दहेज प्रथा जैसी बुरी प्रवृत्तियों पर रोक होनी चाहिए।
उनके साथ अत्याचार और दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए ।हमारे समाज में कन्याओं को बेटियों को ऊंचा स्थान हमेशा से दिया गया है। कहते हैं जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं।
नारी शक्ति हो सशक्त करना चाहिए, आगे चलकर उनको अपने पैरों पर तभी खड़ी होगी जब उनके अंदर आत्मविश्वास आत्म जागृति और दृढ़ निश्चय प्राप्त होसकेगा।
यह दृढ़ निश्चय तब आएगा जब उनको समाज में बराबर का और घर में समानता का दर्जा दिया जाएगा।
पूरे जन समाज को अपने विचारों में आमूल चूल परिवर्तन लाने की आवश्यकता है, तभी नारियों के प्रति सम्मान बढ़ेगा और वह एकजुट होकर के कुछ कार्य कर सकेंगे। अपने उन्नति के अवसर प्राप्त करती हुई ,अपनी बेटियों को पढ़ाकर के दो घरों को रोशन करेंगीं।
इसलिए हमारी भारतीय संस्कृति में नारी के लिए भारतीय धर्म में ,हिंदू धर्म में, सनातनी परंपरा है कि नारी को हमेशा सम्मान दिया जाए।
नारी आज के युग में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, और घर और बाहर दोनों में दोहरी भूमिका निभाती हुई कामयाबी के शिखर को स्पर्श कर रहीहै।
इस कार्यक्रम को अनवरत गतिशील, गतिमान नारियों के प्रति श्रद्धा की भावना इज्जत, मान ,मर्यादा की हर व्यक्ति समाज में होना आवश्यक है।
तभी कहते हैं -यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमंते देवता ।
नारी सृजन, और आत्म शक्ति का एक प्रचंड प्रकाश पुंज है इसे शाश्वत उजासित रखना है।
डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी