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आशा की किरण — रश्मि मृदुलिका

 

रात्रि का प्रथम प्रहर है | सुषमा तेज कदमों से घर की ओर जा रही थी| आज उसे ज्यादा देर हो गई थी| घर पर सभी प्रतिक्षा कर रहे थे | सुषमा के पति रवि का कई बार फोन आ चुका था|सुषमा एक स्वंय सेवी सामाजिक संस्था की अध्यक्ष थी |महिलाओं और बच्चों के लिए समय- समय पर कार्यक्रम आयोजित करवाती रहती थी, सोसाइटी में उसका बड़ा नाम था| इसी क्रम में वह शहर की एक गरीब बस्ती में सफाई कार्यक्रम आयोजित करवा रही थी|
अचानक उसे किसी की सिसकियां सुनायी दी| वह ठिठक गई, उसने गौर से देखा कि एक दुबले कमजोर शरीर की महिला अंधेरे कोने में बैठी रो रही है पहनावे से वह पढ़ी – लिखी अच्छे परिवार की लग रही थी |उसने महिला से रोने का कारण पूछा | महिला ने बताया कि उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया है यह सुनकर सुषमा को बहुत क्रोध आया उसने कहा कि वह उसके पति के खिलाफ पुलिस में रिर्पोट करेगी| महिला ने तुरंत सुषमा को रोक दिया और कहा कि थोड़ी देर में वह घर लौट जायेगी | सीमा ने कहा उसे कभी भी मदद की जरूरत हो तो वह बेझिझक उसके पास आ सकती है उसने उसे अपने काम के बारे में बताया| ऐसा अन्याय सहना उचित नहीं है|उस महिला ने फीकी हंसी हंस कर कहा दीदी इस दुनियाँ में अकेली औरत कैसे जियेगी,, कम से कम घर तो है | ऐसा कह कर वह महिला वहाँ से चली गई| सीमा स्तब्ध रह गई| मध्यवर्गीय समाज की स्त्रियाँ न जाने क्यों इस तरह के भय में जीती है शिक्षित होने पर भी ऐसी सोच रखती है |उसका मन खिन्न हो गया था|
सुबह सफाई अभियान सफलता से पूरा हो गया| सुषमा के मन में वह महिला अब भी घुम रही थी| लगभग एक माह बाद अचानक शाम के वक्त एक महिला हाथ और गोद में मुरझाये चहरे वाली दो बच्चियों को पकड़े सुषमा के सामने खड़ी हो गई उसने गौर से देखा कि एक लड़की के चेहरे पर चोटों के निशान थे | वह रोते हुए कहने लगी क्या वह उनको अपनी पाठशाला में उनको आश्रय देगी | सुषमा उस महिला को पहचान गई थी उसने उसे बैठाया और ढांढस बंधाया | उसने कहा तुमने तो मना कर दिया था आज कैसे उसने यह निर्णय ले लिया | उसने कहा “दीदी मै खुद मार खा सकती हूँ लेकिन वह मेरी बेटियों को मारेगा तो मै सहन नहीं करुंगी, मै इन बेटियों के लिए ही तो सब सह रही थी | अगर मेरी बेटियां भी यह सब सहेगी तो मै उस नरक में रह कर क्या करूंगी ये मेरी बेटियों के भविष्य की बात है | ” ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पर क्रोध, बैचेनी, और माँ का आक्रोश साफ उभर आया | वह समझ गई थी कि वह महिला ‘बेटा जरूरी है ‘ अपने पति के इस सोच का दंश झेल रही है,सुषमा ने उसका अपनी पाठशाला में स्वागत किया| महिला की आंखों में खुशी के आंसू थे और सुषमा की आँखों में आशा की किरण चमक रही थी | वह आश्वस्त हो गई थी कि धीरे धीरे ही सही समाज का यह वर्ग अपने प्रति होने वाले अन्याय को समझेगा और आवाज उठायेगा |

रश्मि मृदुलिका
देहरादून उत्तराखण्ड

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