अच्छाईयां लौट कर आती है — माया शर्मा

रीमा आज नौकरी के लिए इंटरव्यू देने उदयपुर जा रही थी। ट्रेन में जाते वक्त रास्तेमें उसकी मुलाकात राधव से होती है।
बात ही बात में दोनों में दोस्ती हो जाती है। दोनों एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लेते हैं। रीमा उदयपुर स्टेशन आने पर ट्रेन से उतर जाती है। जल्दी बाजी में वो अपना बेग ट्रेन में ही भूल जाती है। घर पहुंचने पर उसे याद आता है कि वो अपना एक बैग ट्रेन में ही भूल गई है।वो बहुत परेशान हो जाती है। तभी उसे याद आता है कि ट्रेन में ही उसने राघव के नंबर लिए थे।वो झट से राघव के नंबर डायल करती है। राघव अगले स्टेशन पर उतरने ही वाला था। तभी रीमा उसको बताती है कि वो अपना बैग ट्रेन में भूल आई है। राघव को जब पता लगता है कि सच में उसका बैग ट्रेन में ही है तो वह रीमा को कहता है कि वो चिंता न करे।राघव उसका बैग अपने साथ ले जाता है। दो दिन बाद रीमा के घर के दरवाजे पर डोरवेल बजती है।रीमा की मां दरवाज़ा खोलती है और पूछती है कि “कौन हो तुम,क्या काम है”
तभी राघव की आवाज कानों में पड़ते ही रीमा दौड़ कर बाहर आती है और बोलती है। अरे! राघव,तुम यहां। कैसे? और मेरा बैग तुम्हारे पास। भगवान को धन्यवाद देते हुए रीमा
राघव को हाथ पकड़ते हुए घर के अंदर ले आती है। रीमा की मां के पूछने पर रीमा उनको राघव से उसकी मुलाकात और बैग खो जाने वाली सारी बात बताती है। रीमा और उसकी मां राघव की धन्यवाद कहती है तब राघव कहता है कि आंटी जब हम किसी का भला करते हैं तो भगवान हमारा बुरा कैसे होने दे सकता है। रीमा ने ट्रेन में एक गरीब की मदद उस समय की थी जब कोई भी उस की मदद को तैयार नहीं था । तो फ़िर रीमा के साथ भगवान कैसे बुरा होने दे सकते थे।
माया शर्मा/स्वरचित