Uncategorized

बेटी की शादी — निबंध– उर्मिला पाण्डेय

दुनियां में चाहे किसी का बेटा भले क्वारा रह जाय परंतु बेटी किसी की भी क्वारी नहीं रहती।
कहावत है परंतु आज वर्तमान समय में इस मंहगाई में ग़रीब जब अपनी बेटी की शादी करता है वह छः सात लाख से कम नहीं होती। प्रत्येक माता पिता अपनी बेटी को अच्छे से अच्छे घर में करने का सपना देखते हैं।
मां सोचती है कि मैंने जो कष्ट उठाए वह मेरी बेटी को नहीं उठाने पड़ें।”जाकी धिय सुखी वाकी माय सुखी।”
बेटी जब अपनी ससुराल से मायके में आती है और अपनी खुशियां माता पिता को बताती है तो माता पिता का दिल खुश हो जाता है। उम्र बढ़ जाती है और यदि बेटी ससुराल में दुःखी हो तो माता पिता जीते जी मरे हुए के समान हैं।
प्राचीन काल से रीति चली आ रही है कि बेटी का विवाह होना जरूरी है सृष्टि का संचालन करने वाली एक नारी ही है। बेटी बिनु कन्या दान का पुण्य नहीं मिल सकता।जिनके घर में बेटी है उन्हीं को करोड़ों यज्ञ करने का फल मिलता है। जैसा कि कहा गया है।
सब दानों बढ़कर के इक कन्यादान कहाता है।
कन्या पद पंकज पूजा से मानव कृतार्थ हो जाता है।
जिसके घर में बेटी है उन्हीं को यह सुख मिलता है।सुख मिलना ना मिलना भाग्य का काम है। परंतु बेटी की शादी तो होनी ही है। मैं भी बेटी की शादी कर रही हूं। सोचती हूं कि नारी का जीवन कैसा बनाया गया है अपने घर को छोड़कर दूजे के घर की फुलवारी महकाती है। यही है बेटी का जीवन तभी तो नारी श्रेष्ठ है नारी जैसा त्याग, समर्पण, सहनशीलता, श्रद्धा, विश्वास, कोमलता, दयालुता आदि जो नारी में गुण नारी में हैं वह पुरुष में पूर्णतः नहीं हो सकते।जिस घर में नारी दुःखी रहती है उस घर से लक्ष्मी किनारा कर जाती है। जहां दुःखों से परेशान होकर नारी के आंसू निकलते हैं उस घर की कभी भी उन्नति नहीं होने वाली।
नारी होना आसान नहीं।
नारी नारी पाषाण नहीं।।
उर्मिला पाण्डेय कवयित्री मैनपुरी उत्तर प्रदेश।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!