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बहू ही दहेज मानो — उर्मिला पाण्डेय

समाज में अब दहेज प्रथा कोड़ की तरह फैली हुई है, जिससे अच्छी-अच्छी लड़कियों की शादी सही जगह नहीं हो पाती। शादी में दहेज में जो लड़की वाला दे उसे ही प्रेम पूर्वक स्वीकार कर लेना चाहिए लड़की वाला अपना सबसे बड़ा तोहफा बेटी जिसे पढ़ा लिखा कर पाल-पोस कर दूसरे को समर्पित करता है, अपने कलेजे का टुकड़ा घर की फुलवारी की रौनक बेटी को दूसरे की फुलवारी महकाने के लिए वंश वृद्धि का मूल कारण एक बेटी ही होती है जिसे अपनी सामर्थ्य से भी अधिक देने की कोशिश करके अपनी बेटी का हाथ वर के हाथों सोंपता है यह सोचकर कि मेरी बेटी को जिन खुशियों के लिए मेंने दिया है वह खुशियां मिलेंगी वह अपना परिवार बसाएगी खुश रहेगी।बात यहीं खत्म नहीं होती जब दहेज में सभी सामान पूरा न होने पर लड़की को सताया जाता है यहां तक कि कहीं कहीं दहेज के लालची भेड़िये बहू को मौत के घाट उतार देते हैं उनसे पूछो कि बेटी से बड़ा कौनसा दहेज है?
जो नव कोमल हृदय घर की लक्ष्मी घर की शोभा को इतना उत्पीड़ित करते हैं।
अभी मैंने भी अपनी बेटी की शादी की है बेटी की शादी में दहेज के अलावा इतना खर्च होता है कि मालूम ही नहीं पड़ता है। इसलिए मेरी तो यही राय है कि दहेज प्रथा को इस मंहगाई के समय में ख़त्म कर देना चाहिए।एक गरीब आदमी अपनी बेटी को दहेज के कारण अच्छा घर वर नहीं दे पाता।लड़के वाले बहू को ही सबसे बड़ा दहेज मानें और दहेज प्रथा कोड़ जैसी बीमारी को खत्म करें।
जय श्री राधे राधे

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