चैत्र नवरात्रि और जीवन शैली में परिवर्तन:—डॉ इंदु भार्गव

चैत्र नवरात्रि भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से हिन्दू धर्म के अनुयायियों द्वारा श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह जीवन शैली में भी सकारात्मक परिवर्तन लाने का अवसर प्रदान करता है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा की आराधना की जाती है, जो शक्ति, साहस और आत्मनिर्भरता का प्रतीक मानी जाती हैं। इन दिनों का पालन करने से व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत कर सकता है और अपने जीवन में नकारात्मकता को दूर कर सकता है।
नवरात्रि का समय व्यक्ति को आत्म-निरीक्षण का अवसर प्रदान करता है। इस पर्व के दौरान उपवासी रहने, शुद्ध आहार ग्रहण करने और मन, वचन तथा क्रिया से संयमित जीवन जीने का प्रयास किया जाता है। यह जीवन के भौतिक पहलुओं से हटकर, मानसिक और आत्मिक शुद्धता की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने का समय होता है। चैत्र नवरात्रि में जीवन शैली में जो परिवर्तन होते हैं, वे न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होते हैं।
इस अवधि में उपवास करने से शरीर की शुद्धि होती है, जिससे सेहत में सुधार आता है। इसके अलावा, नवरात्रि के नौ दिन हर व्यक्ति को अपने जीवन में अनुशासन और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं। प्राय: हम अपनी दिनचर्या में भागदौड़ और तनाव के कारण मानसिक शांति खो बैठते हैं। नवरात्रि के दौरान ध्यान और पूजा से हमें मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है। यही नहीं, ये दिन आत्मनिर्भरता, तपस्या और आत्म-समर्पण की भावना को भी मजबूत करते हैं, जो जीवन के अन्य पहलुओं में भी सफलता और संतोष लाती है।
समाज में नवरात्रि के दौरान सेवा कार्यों का भी महत्व बढ़ जाता है। लोग जरूरतमंदों की मदद करते हैं और समाज में समरसता और भाईचारे का वातावरण बनाते हैं। यह समय हमें यह समझाता है कि केवल आत्म-उन्नति ही नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी कार्य करना चाहिए।
अंततः, चैत्र नवरात्रि न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह जीवनशैली में बदलाव का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है। यदि हम इन नौ दिनों को सही तरीके से बिताते हैं, तो यह न केवल हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है, बल्कि हम एक बेहतर इंसान भी बन सकते हैं। इस प्रकार, नवरात्रि जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन और सकारात्मकता लाने का माध्यम बनती है।
डॉ इंदु भार्गव जयपुर