Uncategorized

एक कविता बेटी के नाम — रिंकी माथुर

सजा नहीं सपना होती है बेटी गैरों के बीच अपनी होती है बेटी रंगों से सजाती है आंगन घरों के आंगन की कल्पना होती है बेटी वेदना नहीं वरदान होती है बेटी आस्था नहीं अरमान होती है बेटी वजूद कभी मिट नहीं सकता बाहर नहीं जीवन का सर होती है बेटी सजा नहीं सपना होती है बेटी गैरों के बीच अपनी होती है बेटी सुख की सुबह हो या दुख की शाम बिन कहे हर पल साथ होती है बेटी जीवन की उलझी राहों के बीच सहज संवेदना होती है बेटी हक होती है मगर कभी कुछ मांगती नहीं हकीकत और हसरतों का इंद्रधनुष होती है बेटी सजा नहीं सपना होती है बेटी आंखों में रहकर पलकों से सजाती है जीवन को सच पूछो तो कभी सीता तो कभी राम होती है बेटी सजा नहीं सपना होती है बेटी गैरों के बीच अपनी होती है बेटी।
रिंकी माथुर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!