जागरण की रात — विजय नागपाल,

जागरण की रात — विजय नागपाल,
बेटा मुझे रात वाली दवाई दे दें,फिर में सो जाऊं,माँ मैंने जागरण पर जाना है पहले ही मैं देरी से हूँ ज्योत भी बनानी है,प्रचंड भी करनी है सारी जिम्मेदारी मेरी है आप खुद ही ले लेना,कहते हुए बेटा घर से निकल गया,ज्योत में बेटा घी डाल रहा है,,माँ गिलास में पानी,,ज्योत को प्रचंड किया जा रहा है,, जागरण की शुरुआत होती है,चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है भेटों से जागरण में रौनके बनी हुई है,बूढ़ी माँ आंखों से कम दिखाई देता है दवाई ढूंढ रही है,पानी का ग्लास हाथ से गिरता है,माँ उठती है पाँव फिसलता है,साथ मे रखे लोहे के ट्रंक से माँ का माथे के साथ कनपट्टी से लहू निकलने लगता है,माँ बेटा,, बेटा,, पुकार रही है,,जागरण में बेटा जोर से बोलो आवाज़ नही आई,,गज़ के बोलो,,आवाज़ नही आई,,पुकार पुकार कर माँ को रिझा रहा है,लोग बेटे के गले मे लाल चुनरियां डाल रहे है,,लाल मोली के धागों के रुपये बांध बांध उसका स्वागत कर रहे है,,घर पर माँ की चुनरी रक्त बहाव से लाल हो रही है,बेटा माँ के भक्तों के हाथ उठवा कर जय माता दी,,जय माता दी,बुलवा कर,,चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है,माता से दीदार करवा रहा है,उधर माँ हाथ उठा कर बेटा,, बेटा पुकार कर असहाय सी बनी है,जागरण की रात अब अपने विश्राम की ओर है,बेटा सबकी दीर्घायु की माता रानी से कामना,बांझन को माँ पुत्तर देवे की मनोतियाँ माँग रहा है,घर पर माँ अंतिम बार देखने की आस लगाएं बैठी है,बेटे के घर का द्वार खोलते की माँ फर्श पर लेटी थी, दोनों बाज़ू बेटे के आने की आस में फैली थी पथराई आँखे बोल रही थी,,,जय माता दी,,,जय माता दी,
विजय नागपाल,हिसार,(हरियाणा)