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जाने किस वेश में मिल जाएं बाबा श्याम — मंजू शर्मा

 

फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले बाबा श्याम का भाव जब जीवन में बरसता है तो दिल गाने लगता है …”बाबा का भाव प्यारा …प्यारा…न्यारा बरसे है जीवन में….। किंतु इस भाव को महसूस करने के लिए मन की पवित्रता जरूरी है। आस्था बिना किसी घटना को देखे हुए उसकी सच्चाई स्वीकार कर लेती है। आस्था जब हद से ज्यादा बढ़ जाए तो वह श्रद्धा बन जाती है और श्रद्धा परिणाम होता है उन घटनाओं की प्रक्रिया का जो आपके साथ घटित होती है। ऐसी ही एक सच्ची घटना का आज मैं जिक्र करने जा रही हूंँ ।

फागुन का महीना आते ही लोगों में उत्साह जाग उठता है।
होली की उमंग और अबीर की खुशबू आनंदित कर देती है
मन को भीतर तक… फागुन की एक अलग ही लहर होती है … मौसम में बदलाव…आम के पेड़ों से आती बगर की खूशबू और चहचहाते पक्षियों का राग स्वत: ही मन को मोह लेता है। बालकनी में खड़ी मम्मी को यही सब देख याद आया खाटूधाम में लगने वाला श्याम का मेला… झूमते-गाते उमड़ती श्याम प्रेमियों की भीड़ । श्याम में भक्ति, भक्तों की मस्ती, खाटू की निशान यात्रा और मेले में अनगिनत लोगों की चहलकदमी…ये बाबा से मिलने की लग्न,मन में श्रद्धा और विश्वास लिए अनन्त प्रेमियों का खाटूधाम पहुंचना। मन में आया इसबार मुझे भी बुला ले “बाबा” बड़ी अभिलाषा है तेरे दर्शन की… फागुन के इस मेले में शामिल होने की… रूंधे गले से मम्मी बाबा से प्रार्थना कर ही रही थी। बाबा आप तो सबकी बिगड़ी बनाने वाले हो। कलियुग के देवता हारे के सहारे हो।
तभी पापा बाहर से आये । थोड़ी देर बाद बोले, “चल इसबार हम लोग भी खाटू चलते हैं श्याम मेला भी देख लेंगे और “बाबा” के दर्शन भी हो जाएंगे।” मम्मी ने मन-ही-मन कहा आप तक मेरी बात इतनी जल्दी पहुंच गई क्या बाबा?
मम्मी को लगा जैसे बाबा ने मन की मुराद सुन ली हो। फिर भी बोली, “इतनी भीड़ में आप चल सकोगे? आपका तो बड़ा जी घबराता भीड़ देखकर।”
तभी पापा ने कहा,”बाबा अपने आप रस्ता निकालेगा।”
मम्मी के तो पैरों में जैसे घूंघरू बंध गए। उसकी खुशी का ठिकाना न था।
भाई के सामने जिक्र किया उसने तुरंत टिकट बुक करवा दी। मम्मी जल्दी-जल्दी पैकिंग करने लगी ।
ऐसा लग रहा था जैसे किसी बच्चे को मनपसंद खिलौना मिल गया हो।

दो दिन बाद ही चल दी सवारी बाबा की यात्रा को…मन में खुशी समाय न समा रही थी। दिल्ली एयरपोर्ट से सीधे रींगस
की गाड़ी ली और रींगस से चल पड़े निशान लेकर भीड़ में कदम से कदम मिलाते हुए । जय श्री श्याम! के नारों ने जोश को बनाए रखा और शाम तक पदयात्रा आखिरी मंजिल तक पहुंच ही गई बाबा के द्वार । यहां तक का सफर तो बिना बाधा के पूर्ण हो गया। लेकिन आगे की भीड़ देखकर मम्मी का मन ये सोचकर घबराया…इतनी भीड़ में ये तो अंदर नहीं जाएंगे। कुछ दूर तो चले फिर पापा ने सच में घुटने टेक दिए।
मैं अंदर नहीं जा सकता मेरा जी घबरा रहा है। वहीं भीड़ से बचकर एक कोने में बैठ गए।
मम्मी को जिसका डर था वही हुआ। मन ही मन मम्मी ने पुकार लगाई। हे बाबा श्याम! “तू तो हारे का सहारा है।”
ये तो हार चुके लेकिन मैं दर्शन के बिना वापस नहीं लौटना चाहती । अब सब कुछ तेरे हाथों में है। तू जाने कैसे दर्शन देगा।
ये कहते हुए भीतर का बांध उमड़ पड़ा आंखों की राह। मम्मी ने अपना चेहरा आंचल में छुपा लिया कहीं पापा न देख ले।
तभी भीड़ को चीरता हुआ करीब एक 12-13 का लड़का वहांँ आया और दोनों का हाथ पकड़कर किनारे-किनारे मंदिर के एकदम भीतर के द्वार तक ले गया। दर्शन करवाया और मम्मी की झोली चुरमा से भरकर बोला, आओ जिस रस्ते से लेकर आया था वहीं से वापस लाकर, वहीं बैठाकर कहा, पहले प्रसाद खा लो, सुबह से भूखे हो फिर बाहर जाना। इतना कहकर वो अंतर्धान हो गया। मम्मी और पापा आश्चर्यचकित थी। “ये बच्चा कौन था?” बहुत खोजा बाद में कहीं नहीं मिला। मम्मी बोली, “आजतक हमनें ईश्वर को हमेशा मूर्तियों में देखा। उस दिन उस दिन श्याम को बालक के रूप में देखा।” उसके बिना भला किसको पता था हम सुबह से भूखे हैं। हम दोनों की आंखें सजल हो उठी। बाबा उस बालक रूप में…हम दौड़ पड़े चारों तरफ देखा वो बच्चा हमें कहीं नहीं दिखाई दिया। हमनें सोचा था दर्शन करके ही प्रसाद लेंगे। उस दिन लगा भक्ति में इतनी शक्ति होती है वो खुद मुराद पूरी करने चले आते नंगे पांँव… यही तो चमत्कार है खाटू नरेश का जो लोग दौड़े चले आते हैं।
आज भी कभी न भूलने वाला ये किस्सा मम्मी सुनाती है तो सबके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। तभी सब बोल पड़ते हैं ।
सबकी बिगड़ी बनाने वाले शीश के दानी की जय

हारे-हारे हारे-हारे तुम हारे के सहारे
खाटू के बाबा श्याम

मंजू शर्मा। कार्यकारी संपादक

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