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कहानी — मुहब्बत का अहसास – प्रेममणी एसलीना (सिमरन)

 

बाल तेज सुरमई हवा के कारण लहर चेहरे को सहला रही थी,
सब कुछ जैसे पीछे छूटता जा रहा था।

और नए चेहरे दिखते रहे,नए जगह में रुकते रहे।

मन में तस्वीर उभर रही थी,निशा कोसो दूर पुरानी यादों में खोती जा रही थी।
अतीत की यादें एक पल हंसाती तो दूसरे पल आंखो में नमी ठहराती।

ऐसा लग रहा था वो फिर जुलाई के वो खूबसूरत दिनों में विचर रही हो।

आज पुरानी यादें ताजा हो चलचित्र की तरह सिलसिलेवार गुजरती रही।

वो भी क्या दिन थे मस्ती मजाक,खिलखिलाना, दोस्तो संग समय बिताना,

फिर पढ़ाई खत्म होते होते कई दोस्तो सहेलियों की शादियां हो गई फिर सब अपने परिवार में व्यस्त हो गए

निशा 35 साल की हो चुकी जीवन के आधे वर्ष गुजर चुके थे,

वह एक सरकारी स्कूल की अध्यापिका थी अभी भी उसकी खूबसूरती कम नहीं हुई थी, हां उम्र के साथ समझदारी जरूर बढ़ गई।

माता पिता प्रौढ़ हो गए थे,भाई बहनों का विवाह हो गया था।
इनके बच्चो परिवार,स्कूल के काम में व्यस्त कब समय पंख
लगाकर उड़ गया पता ही नही चला।

इन दिनों बड़े वर्षो बढ़ निशा के सारे दोस्त फेसबुक से मिले और व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया।

आज एक मिलन समारोह उसी स्कूल में रखा गया जहां उन्होंने बारहवीं तक पढ़ाई की थी।

फोन से बात हो रही थी,
ठीक से निशा को याद नही रहा की आखिर ये सौरभ कौन है,जिसने यह कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा था,

निशा धुंधली यादो में उसे तलाश रही थी लेकिन याद ही नहीं कर पा रही थी,फिर झुंझलाकर मौसम की मदहोशी में और यादों में खोती रही।

ट्रेन से उतरते ही रोमा और शीतल उसे लेने आए वे अब भी इसी शहर में रहते थे,
किंतु निशा दूसरे शहर में रहती थी,क्योंकि निशा के पिता रिटायर के बाद दूसरे जगह बस गए थे।

तीनो सहेलियां मिलते ही एक दूसरे से लिपट गई और रो पड़ी।
फिर तीनो रोमा के घर गए पास में ही शीतल का भी घर था।

आखिर शीतल और रोमा ने अपने मुहल्ले के लड़को से जो शादी की थी।

निशा_रोमा तुम और शीतल हर दिन मिलती होगी न यार।

रोमा_हां हम तो हर दिन मिलते है यार बस तुम कहां थी इतने दिनो?

निशा_पापा ने हैदराबाद में घर ले लिया था बचपन में तो हमे वही जाना पड़ा यार करे ,बहुत दिन तो तुम सबकी बहुत याद आई फिर धीरे धीरे सैटल हो गए।

नौकरी लगने के बाद धीरे धीरे मन भी लग गया।
बहन भाईयो की वही पास दूर में शादी हुई
अब उनके बच्चो के कारण समय कब निकला पता नही चला।

निशा_ तुम बताओ तुम दोनो तो बहुत होशियार निकली आखिर अपने पसंद के लड़को से शादी हो गई,कैसे माने अंकल आंटी ये तो बताओ।

रोमा_ बहुत मुश्किल था लेकिन मान गए।

शीतल_तुम बताओ तुम तो इतनी खूबसूरत हो आज भी और सरकारी टीचर भी तो अभी तक शादी क्यों नही की भई।

निशा_कोई मिला नही यार

शीतल_अच्छा कैसे नही
मिला और जो कॉलेज में दिन रात तुम्हारे पीछे पड़ा था उसका क्या
आखिर तुम भी तो उसे चाहती थी न

निशा_ हां लेकिन उसकी मां ने शर्त जो रख दी थी की सारी जिम्मेदारियां पूरी होनें के बाद ही शादी करना
तो क्या करते मुश्किल था।

रोमा_ अच्छा तो उसकी शादी हो गई?
निशा_ वो तो दुबई चला गया था जॉब के लिए
फिर मां ने मेरा फोन तोड़ दिया।
नंबर कभी मिला नही बस

शीतल_ ओहो तो कोई अच्छा रिश्ता तो आया होगा न

निशा _ मां पापा को कौन देखेगा
भाई तो अच्छे है लेकिन भाभी भी ठीक है लेकिन उनको अलग रहना था,बाकी बहन परिवार में रहते है,और बची मैं कैसे छोड़ दू माता पिता को।

रोमा_ सही कहा तुमने
तो अब कुछ सोचा है।
निशा_यार अब तो उम्र निकल गई।

शीतल_कोई उम्र नही निकली है आजकल 50 साल के अंकल आंटी जीवन की शुरुवात कर रहे तो तुम तो अभी अच्छी हो

निशा_ छोड़ी तुम दोनो क्या लेकर बैठ गई
तुम्हारे बच्चे बड़े हो गए होंगे न

रोमा_ हां हमने तो कॉलेज के बाद ही शादी कर ली थी तो बच्चे बड़े हो ही गए बाहर पढ़ रहे है
अब सास ससुर नही रहे हम दोनो ही है।

शीतल_ मेरे भी बच्चे बाहर पढ़ते है
मेरे ससुर अभी है अच्छे है अभी तक और बचे हम दोनो अपने अपने काम में व्यस्त।

रोमा_ शीतल आज रुक
जाओ न तीनो खूब बाते करेंगे।

शीतल_ ठीक है मैं कुणाल को और पापा जी को बता दू और ज्योति को बुला लेती हूं
रुक जाए अपने पापा के पास वो दवाई रहती है न रात की।

रोमा_ ठीक है खाना यही खाना है तुम्हे न

शीतल_ ठीक है न मैने पनीर बनाई थी ले आती हूं।

रोमा_ठीक है अब जल्दी जाकर आओ।

शीतल_ठीक है आती हूं

रोमा_ निशा तुम फ्रेश हो जाओ,मैं डिनर का देख लूं वैभव को भी दे आती हूं आराम करो ।

निशा_ ठीक है

कुछ देर बाद शीतल आती है

रोमा _शीतल आ गई तुम आ जाओ किचन में।
रोमा और शीतल दबी आवाज में कुछ बाते करती है।

रोमा_ निशा चलो डिनर करते है यही लगा देती हूं मैं ठीक है

रोमा तुम हेल्प कर दो जरा

शीतल_ ठीक है चलो
कमरे में सब भोजन करती है ढेरो बाते भी करती है और सोने तक बाते करती है उनकी खिलखिलाहट से कमरा गूंजता है वे अतीत में खूब गोते लगाती है

रोमा_शाम का कार्यकम है निशा शीतल चली गई अपने घर तुम सोई थी इसलिए उसने नही जगाया
तुम फ्रेश हो जाओ नाश्ता लगाती हूं।

निशा _ ठीक है आओ
रोमा_ लो भाई तुम्हारी अदरक वाली चाय
और छोले पूरी ले आई

निशा_ सुबह सुबह इतना बना लिया

रोमा_ रात को सारी तैयारी कर ली थी
सुबह बना लिया
बाकी काम तो बाई कर जाती हैं।

नाश्ता करने के बाद दोपहर का खाना खाने के बाद दोनो सहेलियां आराम करती है।
फिर शाम के पार्टी के लिए तैयार होती है।

रोमा और शीतल साड़ी में खूबसूरत दिख रही थी।
निशा कमरे से तैयार होकर निकलते देख उनकी नजरे उसके चेहरे पे अटक गई ।

रोमा और शीतल _निशा
क्या बात है तुम आज भी उतनी ही खूबसूरत हो यार सच में।

निशा_ तुम दोनो तो कुछ भी चलो अब टाइम हो रहा है।

शीतल_ चलो मैं अपनी कार ले आई हूं जल्दी चलो।

रोमा_ ठीक है आओ निशा

पार्टी में पहुंच कार से उतर रोमा और शीतल आगे बढ़ गई और निशा कुछ दूरी पर थी

इतने में अनाउंस हुआ
आइए दोस्तों आज के दिन को सेलिब्रेट करे।
जिसे हमारे दोस्त कबीर ने ऑर्गनाइज किया है
जो जानी मानी हस्ती है
लेकिन उनका दिल आज भी अपने दोस्तो के लिए धड़कता है।
आइए तालियों से उनका स्वागत करे।

आ रहे है हम सबके चहेते कबीर

कबीर ने आते आते एक प्यारा गाना गाया
गीत था_
छूकर मेरे दिल को

लेकिन बीच में वह चुप हो गया सब स्तब्ध हो गए
फिर निशा ने सामने से साथ दिया।

रोमा और शीतल की खुशी का ठिकाना नहीं था
आखिर यही तो उनकी प्लानिंग थी।

सबने अच्छे परफोर्मेंस दिया फिर देर रात पार्टी खत्म हुई सब अपने घर चले गए
कई तो दूर पास के शहरो से आए थे वे ट्रेन, कार आदि से फिर मिलने का कह नम आंखे लिए लौटे।

रोमा शीतल और निशा भी घर लौटी

शीतल_ रोमा और निशा तुम चलो मैं इनको कहती हूं मुझे तुम्हारे पास पहुंचा दे थोड़ा देख लेती हूं घर के काम
कल निशा मेरे घर डिनर है तुम दोनो का।

निशा और रोमा _ ठीक है

रात तीनों साथ सोती है
तीनो _आज बहुत थक गए यार

सुबह उठते ही रोमा चाय लिए खड़ी थी।
निशा_ तुम मेरी आदत मत बिगाड़ो घर में सब मुझे करना होता है ।

रोमा_ एक दो दिन में कोई आदत नही बिगड़ती अब चलो तैयार हो जाओ नाश्ता करके ठीक है।

निशा_ ठीक है पहले चाय तो पी लूं

रोमा_ हां हां बेड टी की आदत है जो तुम्हारी

दोपहर तीनो शीतल के घर गई_ सबने भोजन किया।

शीतल_ रोमा जी आज तुम दोनो रात का डिनर भी यही करना होगा
मैने निशा के आने की खुशी में छोटी सी पार्टी भी रखी है निशा का स्पेशल दिन होगा।

निशा_ कल ही तो थी न पार्टी आज फिर
शीतल_ ये तो पहले से तय था न आज थोड़ी प्लान किया तुम टेंशन मत लो यार

निशा_ तुम दोनो न क्या बोलूं अब

रोमा_ तुम्हे कुछ नही कहना है जी सिर्फ अच्छे से तैयार होकर आना है ड्रेस मैने सेलेक्ट किया है।

निशा_ अरे अब ड्रेस भी ये क्या

रोमा_ अरे वरे कुछ नहीं
थोड़ा आराम करो आज फिर वही ब्यूटेशियन आयेगी।

शाम मेहमान आने चालू हो जाते है।
घर का माहौल एकदम बदल गया है
सच ने इतना सुंदर अरेजमेंट क्या कहने

और फिर एक सुंदर गीत गाते हुए कबीर और निशा को भी गाने का आग्रह करता है
गाना है

ऐसे भोले बनकर है बैठे जैसे कोई बात नही

गाते गाते निशा अतीत में कही खो जाती
एक लड़का कॉलेज में निशा के आते जाते
यही गीत गाता
फिर तुरंत दूसरा गीत
छूकर मेरे दिल को गाता

निशा होनहार छात्रा थी ज्यादा ध्यान नही देती वैसे भी दूसरे को पसंद जो करती थी वह तो आगे पढ़ने चला गया और शादी की मनाही भी हो गई थी

इन दिनों वो उदास रहती थी लेकिन दुख भूलने सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया और व्यस्त
कर लिया खुद को।

गाना खत्म होते ही कबीर ने निशा को प्रपोज किया

कबीर_ निशा क्या अब तुम मुझसे शादी करोगी।

निशा_ अरे अचानक ये क्या

कबीर_ तुम समय ले लो
वैसे मेरे लिए तो कई सालो का इंतजार है ये।

निशा_ कई सालो का इंतजार

कबीर _ हां भई भूल गई कॉलेज आते जाते
यही गाना तो मैं गाता तुम्हे देखते ही
तुम्हे कहां याद होगा
तुमने तो कभी ध्यान नहीं दिया।

निशा_ अच्छा वो तुम हो
मैने ध्यान तो दिया लेकिन मैं उस समय किसी और के सोच में थी।

कबीर_ हां हां मुझे पता है दीपक के ख्याल में न
अब तो वो नही है उसने शादी भी कर ली

निशा_ मेरे माता पिता अभी है उनसे पूछना होगा मुझे

कबीर_ तुम्हे इतने उम्र में भी पूछना होगा।

निशा_ हां मेरे माता पिता है ये तो उनका अधिकार है वे ही देखेंगे

कबीर _ मुझे यकीन था तुम्हारी यही बात होगी
इसलिए उन्हें भी हमने बुला लिया है

निशा_ क्या कहां है
कब आए तुम कैसे

शीतल_ तुम्हारे आते ही कबीर उन्हे ले आया था
अपने यहां ठहराया था उसने

निशा_ तो मुझे किसी ने बताया नही

शीतल_ छोड़ो अब मांजी पापा जी आइए

निशा_ मां पापा आओ
आप लोग अकेले फोन भी नही किया

मां _ बेटा हम अकेले नही तुम्हारे भाई भाभी बहने जीजा बच्चे सब चले आए है आखिर हमे अपने जगह आने में क्या दिक्कत होगी भला।
और कबीर ने अच्छे से हमें लाया है हमे अच्छे से ठहराया भी तुम चिंता मत करो

निशा _तो बाकी सब
पापा_बेटा बाकी सब अभी अपने अपने दोस्तो के घर गए है आ जायेंगे।

मां _ बेटी तुम बताओ हम तुम्हारे हां का इंतजार कर रहे है तुम्हे कबीर कैसा लगा

निशा_ आप लोग इतने जल्दबाजी में पूछेंगे तो मैं क्या बोल पाऊंगी।

पापा _ निशा बेटा दो दिनों में हमने कबीर को जान लिया और समझ भी लिया वह अच्छा व्यक्ति है और उसके पास कोई कमी नहीं

निशा_ उसके घर परिवार वाले भी तो होंगे
न उनकी सहमति ?

पापा_ उसके पिता है एक बहन उसकी शादी हो चुकी है।
सब राजी है।
तुम चाहो तो कबीर को और समझ लो आखिर हम कब तक तुम्हारा साथ दे पाएंगे।

निशा_ मैं क्या कहूंगी जो आप सब कहेंगे वही तो कहूंगी न।

निशा के भाई बहन_ ये हुई न कोई बात
सारे बच्चे मासी बुआ करके दौड़ कर गले लग गए

निशा_ आ गए तुम सब
मुझे बताया नही है न

शीतल_ अब हो गई बाते अब आ जाओ स्टेज में मैडम

निशा स्टेज में ये क्या

रोमा_ ये वो अब नही चलेगा जी हमने कई दिनों से प्लान किया है तुम्हे क्या पता अब चलो भी।

कबीर_ हाथ बढ़ा कर निशा को थमता है
निशा को रिंग पहनाता है सब तालिया बजाते है।

पूरी रात ख्वाब सी बीत रही है।

पापा _ कबीर बेटा यहां तक तो सब सही था लेकिन अब शादी तो हमारे घर में ही होगी तुम्हे बारात लेकर वही आना होगा।

महफिल हंसी से गूंज जाता है।
कबीर_ जी पापा जी

और कुछ महीनो में बड़े धूमधाम से कबीर और निशा की शादी हो जाती है

एक बार फिर सब सहेलियां साथ होती है
आज निशा की बेटी के जन्मदिन की पार्टी जो है

कबीर और निशा शीतल
और रोमा और उनके परिवार का शुक्रिया अदा करते है।

और सब खुशी से अपने घर लौटते है
आजकल तो रोमा शीतल और निशा को आए दिन मुलाकात होती है अब वे एक शहर में जो रहती है।

प्रेममणी एसलीना (सिमरन)
नागपुर (महाराष्ट्र)

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