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लैंडलाइन के दौर में  — रमेश शर्मा

 

बात सन 1989 की है। मेरा रिश्ता पक्का हुआ था। हम झोटवाड़ा जयपुर में रहते थे। और मेरे ससुराल वाले ब्रह्मपुरी जयपुर जोकि पुराने शहर के नाम से जाना जाता है वहाँ थी।
हमारे घर फोन था मगर ससुराल में फोन नहीं था। उनके बगल वाले मकान में था।
कई बार ऐसा होता था कि पहले फोन करके उन्हें बुलाने के लिए कहना पड़ता था। फिर दस मिनट के इंतजार के बाद दुबारा फोन करके बात करनी पड़ती थी। तथा अधिकतर फोन ड्राइंग रुम में रहता था। जहाँ कोई न कोई घर का सदस्य बैठा रहता था। दूसरी तरफ दूसरे के यहाँ बात करने के लिए बुलाने में ही शर्मिंदगी होती थी। बात संकेतों के माध्यम से की जाती थी।

कई बार हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती थी। एक बार मैंने अपनी पत्नी को फोन पर राममंदिर स्टेशन रोड़ पर मिलने के लिए कहा। जबकि हमें छ: बजे पिक्चर जाना था। मैं वहाँ पांच बजे से इंतजार करता रहा। वो मंदिर जाने के हिसाब से छ: बजे आई।
और हम पिक्चर नहीं जा पाए। मंदिर में ही घंटे भर बैठ कर बातचीत करके घर आ गए।

रमेश शर्मा

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