लेख .. “अपनापन” — नरेंद्र त्रिवेदी

अपनापन यानी की व्यावहारिक निकटता, बातचीत और आपसी तालमेल जिसे हर कोई पसंद करता है। अगर कोई प्यार करता है तो सामने वाला यही व्यवहार करेंगे ऐसा सब सोचते है।एक दूसरे के लिए भावनाओं की लहरें दिल में बढ़ती हैं। जो सबको पंसद आती है और आनंद भी देती है।
ऐसा अक्सर होता है। दोस्तों के समूह में हम पसंदीदा दोस्तों के साथ आनंद लेते हैं। कभी कभी पसन्दीदा दोस्त नही मिलने से मज़ा किरकिरा हो जाता है ओर इसके बिना हम खाली खाली महसूस करते हैं। हमें उस दोस्त के मूल्य का एहसास होता है। उस दोस्त का मूल्य समझा जाता है। रिश्तेदारों के साथ भी ऐसा ही होता है। यदि कोई अवसरमें हम जाते है तो हम पहेले पूछते हैं कि किसे आमंत्रित किया गया है। हमारे पसंदीदा व्यक्ति या दोस्तको आमन्त्रित किया है तो हमारी खुशियाँ दोगुनी हो जाती हैं।हमारा अवसर के लिए उत्साह बढ़ जाता है।
सांसारिक जीवनमें पतिपत्नीका रिश्ता बहुत महत्वपूर्ण ओर माइने होता है। क्योंकि यह एक पारिवारिक संगठन की नींव है। यदि दोनों के बीचका रिश्ता स्वस्थ नहीं है, तो इसका प्रभाव बच्चे की परवरिश से लेकर बड़ों के जीवन तक फैलता है। दोनों के जीवन को बाधित होने के साथ -साथ कई अन्य लोगों के जीवन को भी प्रभावित करता है और अंत में परिवार संगठन की नींव हिल जाती है। कभी कभी यह नष्ट भी हो जाती है।
बच्चे भी राष्ट्र का हिस्सा हैं। स्वस्थ और सहज तरीके से बच्चे भी बढ़ रहे होंगे। परिवार भी सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित होगा। लेकिन ऐसे परिवार में जहां प्यार, एक -दूसरे के लिए प्यार या उन के प्रति असंतोष, बाल प्रजनन में एक अप्रिय प्रशासन होगा; वो परिवार समाजमे अपना वजूद ओर परिवारकी पहेचान खो देता है। इसलिए, बच्चों के साथ सहयोग भी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्यूँकी बच्चा भविष्य का नागरिक है, इसलिए यह सामाजिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
अपनापन दो-तरफ़ा की प्रक्रिया है। एक हाथ दे ओर दूसरे हाथ से ले। क्यूँकी सीमांत प्रक्रिया अल्पजीवी होती है। हर एक प्रक्रिया में प्रतिक्रिया की आवश्यकता जरूरी है। एक तरफा व्यवहार लंबे अरसे तक टिक नही शकता। यह एक दूसरे को अपनाने, समझने का व्यवहार है। खोखले रिश्ते ओर व्यवहार एक पोखर की तरह होता है जो किसी भी समय टूट जाते हैं। कोई भी तभी जीवित रह सकता है जब दोनों के बीच खुलापन होता है। कोई किसीके साथ भेदभाव नहीं रखता है।
हमें अपने मन के करीब होने की जरूरत है। दिन-प्रतिदिन के व्यवहार में एक दूसरे के करीब होना चाहिए ताकि हम खुले दिल से बात कर सकें। और यह सब इस बात पर निर्भर करता है की हमारे सामने वाली व्यक्ति हमारे साथ कैसा व्यवहार करती हैं। मेरी राय में, उच्चतम स्तर के संबंध वाले पतिपत्नीका रिश्ता उत्तम माना जाता है क्योंकि यह सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक जीवन के उत्थान की नींव है।
संक्षेप में, पारिवारिक संबंधों, व्यावहारिक संबंधों, सामाजिक संबंधों या किसी भी प्रकार के संबंध के लिए अपनापन मूलभूत तत्व है। बिना अपनापन के सभी संबंध खोखले हो सकते हैं ओर रिश्तों में अविश्वास का माहौल उत्पन्न होता है। जो सभी प्रकारकी जीवन शैली के लिए विष का काम करता है।
नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर -गुजरात)