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लेख -शादी में फिजूलखर्च और संस्कार कैसे बचाया जाए? — अमृत बिसारिया

 

 

शादी में यदि फिजूल खर्च को रोक दिया जाए तो संस्कार अपने आप बच जाता है।
हम संस्कारी होंगे और हमारा संस्कार से मंडित व्यवहार भी शादी के फिजूलखर्च को रोककर संस्कारी बना रह सकता है।
शादी में दिखाने का प्रचलन बहुत जोरशोर से बढ़ता जा रहा है, मनुष्य के ऊपर एक टैक्सिंग प्रॉब्लम बनकर उभर रहा है।अक्सर यह देखने में आता है दुल्हन का लहंगा ओर दूल्हे की शेरवानी बहुत महंगी होती है और केवल एक बार पहनी जाती है फिर क्यों इतनी महँगी ख़रीदें?
वरमाला के लिए फूलों का डेकॉरेशन और स्टेज बनाने की भी कोई जरूरत नहीं। मंत्रोच्चारण से शादी का होना बहुत जरूरी।यह हमारी वैदिक सभ्यता है।पर कुछ लोग अपने दिखावे के अनुसार शादी की प्रक्रिया को करने या कराने की कोशिश करते हैं जिससे समय बर्बाद होता है।
शादी की फोटोग्राफी के समय कुछ ऐसी मुद्राएं बनाई जाती है जिसे महफिल में शो करने की ज़रूरत नहीं है।यदि रात में शादी न करें तो लाइट्स क्रैकर्स की फिजूल खर्च से बचते हैं और लोगों को अनेक समस्याओं का सामना भी नहीं करना पडेगा।
यदि इन सब चीजों को हम अवॉइड करे, तन मन से अतिथि सत्कार करें और रिश्तेदारी और रिश्तों को पहचानने की कोशिश करें तो एक अपनेपन के माहौल में शादी संपन्न की जा सकती है।
कुछ लोग यह भी सोचते हैं की फोटो अच्छी आनी चाहिए सारी लग्जरी का इस्तेमाल होना चाहिए क्योंकि शादी एक बार ही होती है और उस समय के चित्र को इंसान जीवनभर अपने पास रख सकता है और याद करता है।
कुछ चीजें जो ज्यादातर ज़रूरी नहीं होती है यदि हम उसको अवॉइड कर सके तो शादी त्रासदी न बनकर सुकून का सबब बन जाए, इससे हमारे संस्कार भी सुरक्षित रहेंगे और हम फिजूलखर्ची से भी बचेंगे।
अमृत बिसारिया

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