लघु कथा माता का जागरण — लेखक, विनोद ढींगरा *राजन*

(नवरात्रि के नौ दिन)
माँ वेष्णो का दरबार सजा हुआ परिवार के सभी लोग आने वाले मेहमानो का स्वागत भी कर रहे थे आज रमेश बाबू के बेटे का जन्मदिन है,, पूजा की तैयारी चल रही थी,, आसमान मे कुछ हलचल थी बिजली कड़क रही थी, जागरण मंडली तैयार थी वाद्य यंत्र बजाके देखे जा रहे थे,, पंडित जी पूजा के लिए बेठ गये सभी परिवार वालो को बुलावा भेजा जा रहा था,, रमेश बाबू पत्नी बच्चों सास ससुर साले सालियो सहित दरबार में बेठे थे,, बेटे को पास बिठाया,,
*–पंडित जी,, पूजा प्रारम्भ करे मौसम खराब हो रहा है,,
*-चिंता ना करे ये बेठी है माँ,, सब ठीक करेगी,,
*–बुलाइये सभी को,,, पंडित जी ने कहा तो रमेश बाबू बोले
सारे आ गये आप शुरू करे,, पंडित जी की निगाहे रमेश बाबू की माता जी को ढूंढ रही थी,, अभी पिछले जन्मदिन पर तो थी,, और ऐसा कोई संदेशा भी नही कि ,,,
*–रमेश बाबू,, माँ जी का स्वास्थ तो ठीक है ना,,
*–आप पूजा प्रारम्भ करे पंडित जी,, वो नही आयेगी,
*-पर माता जी को बुला लेते तो,,,
*–आप अपना काम करो पंडित,,,
“तभी बीच में रमेश बाबू का बेटा बोला,,
दादी नही आयेगी,,, पापा मम्मी ने उन्हे घर से निकाल दिया
*–चुप रह,,, तुझे किसने बोला बोलने के लिए,, बेटे के मुंह पर चपत मार दी,,
*-पंडित जी अपना काम करो,,,
*–माफ करना सुरेश बाबू मै पैसो का लालची नही, जिस घर मै अपनी माँ का आदर ना हो उस घर मै जगत जननी कैसे आयेगी,,, मै पूजा नही कर सकता,,
*–चल खड़ा हो पंडत तेरा काम नही चलो बजाओ जागरण शुरु करो,, उसी वक्त तेज आंधी चली टेंट उखड़ने लगे बिजली चली गई,, बारिश तेज होने लगी अपने आपको छुपाते सारे इधर उधर छुपने लगे,,, रमेश को पंडित जी की बात याद आ गई जिस घर में अपनी माता का आदर ना हो वहा जगत माँ केसे विराजेगी,,, जय माता दी
लेखक, विनोद ढींगरा *राजन*