मैच का शौक — सुनीता तिवारी

आखिरकार राजेश और सुरेश पहुंच ही गए राजीव गांधी इंटरनेशनल स्टेडियम,जो खचाखच भरा हुआ था पैर रखने की भी जगह नहीं थी।
सारी सीटें भरी हुई,क्या करें क्या न करें।
आई पी एल का क्रेज भी बहुत था।
पहले बिना रिजर्वेशन रेल यात्रा करी,सिकंदराबाद तक न जाने कितना पसीना बहाया।
सीधे ऑटो लेकर अपने गंतव्य पर पहुंच गए।
थकान इतनी हो गयी कि खड़े नहीं होते बन रहा था सोचा कि मैच देख लेंगे फिर रात में दोनों दोस्त टांग फैलाकर सो जाएंगे।
पर गर्मी के मारे जान निकली जा रही थी।
एक तो गर्मियां जल्दी आ गईं दूसरे जगह नहीं मिल रही।
मैच देखने का रोमांच न होटल लौटने दे रहा था न भीड़ बैठने दे रही थी।
राजेश को अपने आप पर गुस्सा आ रही थी।
मम्मी की बात मान ली होती तो ए सी में घर पर बैठकर मैच देखते।
दर्शक दीर्घा से मस्त आवाजें आ रही थीं।
कभी विराट कोहली को देखते कभी भीड़ को देखते।
मैच देखकर कोई ताली बजा रहा था कोई अपने चेहरे पर झंडा बनाये हुए था बहुत ही शानदार समा बना हुआ था।
ऐसा लग रहा था कि इस उत्सव को छोड़कर कहीं न जाएं और मैच पूरा देखें पर मूसलाधार पसीना आंखों में जाने से आंखें दुखने लगी थी।
हैदराबाद बहुत गर्म शहर था।
चारों तरफ आतिशबाजियां चल रही थी।
तिरंगे लहरा रहे थे हर कोई खुशियां मना रहा था।
आखिरकार इंडिया की जीत हुई।
अगले दिन जीत की ख़ुशी मनाने दोनों दोस्त मल्लिकार्जुन चले गए।
सुनीता तिवारी