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मोबाइल फोन — मंजू शर्मा 

 

आज मोबाइल फोन एक ऐसा यंत्र बन चुका जो सबके हाथों में कलावा की तरह तंत्र-सा लिपटा रहता है।
एक छोटे से फोन ने पूरी सृष्टि को ही खुद में समेट लिया है । ऐसा क्या है ? जो आपको इस छोटे से दिखने वाले खिलौने यानी कि फोन में नहीं मिलेगा।
इसी कारण ईश्वर द्वारा निर्मित सृष्टि पर मनुष्य द्वारा निर्मित सृष्टि में छोटा-सा यंत्र हावी होने लगा है।
हर पीढ़ी का इंसान इसका आदी हो गया है जैसे एक बीमारी से ग्रस्त मरीज औषधि का आदी हो जाता है।
अनगिनत जानकारियों का ये खजाना इंसान को आलस्य की और धकेलता हुआ। नई-नई बिमारियों से भी ग्रसित कर रहा है। घंटो लोग इसपर बैठे काम करते रहते हैं। इसी वजह से फिजिकल वर्क तो जैसे खत्म ही हो गया।

मानती हूंँ सोशल मीडिया से जुड़कर लोगों की प्रतिभाएं बढ़ी है । अनगिनत जानकारियों का समाधान मोबाईल फोन और सोशल मीडिया के द्वारा ही संभव हो सका है ।
यहां तक कि पिछले वर्षों में महामारी के समय बच्चों को घर बैठे किताबो से जोड़े रखना इसके बिना संभव नहीं था।
घर से दूर…लाॅकडाऊन की स्थिति में किसी कर्मचारी के आने पर रोकथाम लग जाने से लोगों को दिक्कत के समय यूट्यूब की सहायता से खाना बनाने में कारगर सहायक रहा ये फोन… ज्यादातर दैनिक कार्य भी घर बैठे ही हो जाते हैं।

यहां तक कि रोजीरोटी के लिए विदेशो में रहने वालों प्रियजनों से भी आसानी से बातें हो जाती हैं।
इसका श्रेय भी हम सोशल मीडिया और इस मोबाईल फोन को ही देते है, जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते हैं ठीक उसी प्रकार मोबाईल फोन और सोशल मीडिया के उपयोग के साथ अच्छाई और बुराइई दोनों ही पहलू जुड़े
हुए हैं, यह अब आप पर निर्भर करता है कि आप किस तरह इसका उपयोग करते हैं ।
सबसे बुरी बात ये लगती है जो मोबाईल फोन के अत्याधिक उपयोग के कारण गुलाम होते लोगों ने अपनों से ही दूरी बना ली है। एक ही कमरे में बैठे लोगों का एहसास भी एक दूसरे को नहीं होता। आत्मीयता जैसे मर ही गई है।

बच्चों की मासूमियत और बचपना दोनों ही इस यंत्र में समाहित होकर रह गया है। खेल कूद दादी-नानी का प्यार वो राजा-रानी की कहानियां… कुछ अत्यधिक पढ़ाई और कुछ सोशल मीडिया के शिकार होते शौक… शारीरिक श्रम की गतिविधियों से वंचित ही रह जाते हैं।

बस अंत में इतना ही कहना चाहूंगी। अत्यधिक किसी भी चीज़ का उपयोग हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकता है। आगे आप सब समझदार है।

मंजू शर्मा
उड़ीसा

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