मोबाइल की नो एंट्री, — अलका गर्ग

उस समय मेरे पति हल्दिया(पश्चिम बंगाल )में एक बड़ी कंपनी में वाइज प्रेसिडेंट थे।अच्छा घर,गेट पर गार्ड नौकर सब मिले हुए थे।
अधिकतर गार्ड बिहार के सुदूर गाँव के थे। उनके परिवार से कभी कभी फ़ोन हमारे नंबर पर आ जाता था तो मैं नौकर से उसे बुलवा कर बात करवा देती थी।सभी गार्ड बहुत खुश होते और कृतज्ञता मानते थे।उस समय मोबाइल नया नया आया था।महँगा और अज्ञानता कारण बहुत कम लोग रखते थे।
एक दिन एक गार्ड के घर से फ़ोन आया।नौकर बाहर गया था और नौकरानी काम कर रही थी।देखा वही गार्ड ड्यूटी पर है तो मैंने बालकनी से उसे फ़ोन दिखाते हुए ऊपर आने का इशारा किया।वह दौड़ता हुआ ऊपर आ रहा था तब तक मेरा फ़ोन हाथ से छूट कर तीन मंज़िल का सफ़र तय करते हुए नीचे पहुँच गया।मैंने नौकरानी को फ़ोन लाने के लिए नीचे दौड़ाया।दोनों जल्दीबाज़ी में आपस में सीढ़ी में टकराए भी।पर अब गार्ड ऊपर था और फ़ोन नीचे।
मैंने उसे बताया कि फ़ोन नीचे गिर गया है तो गार्ड ने सोचा मैं नीचे ही ले फ़ोन ले लूँगा और वह भागा नीचे।इस क्रम में दोनों फिर टकराए।अब मामला उल्टा था।फ़ोन ऊपर गार्ड नीचे….
दरअसल नौकरानी को नहीं मालूम था कि गार्ड के घर से फ़ोन है तो वह उसको कैसे देती।और गार्ड को नहीं मालूम था कि वह फ़ोन ले कर भाग रही है तो वह उसे कैसे रोकता …
बाद में गार्ड को ऊपर बुला कर बात करा तो दी लेकिन मेरा फ़ोन तीसरी मंज़िल से गिर कर चोट खाने के कारण एक सप्ताह अस्पताल में एडमिट रहा।बगीचे में घास में गिरने के कारण जान तो बच गई।
अगले दिन ही हम लोगों को कोलकाता का मशहूर नेशनल म्यूज़ियम घूमने जाना था पर फ़ोन के हॉस्पिटल में होने के कारण मैं मन में बहुत दुखी थी।क़ीमती चित्रों से महरूम रह जाऊँगी सोचकर..सोचा अब पतिदेव की खुशामद करके ही फ़ोटो खिंचवाने पड़ेंगे।
लेकिन अग़ले दिन जब म्यूज़ियम में “मोबाइल की नो एंट्री “का बोर्ड लगा देखा और लोगों को मायूसी के साथ अपने मोबाइल पॉकेट से निकाल कर जमा कराते हुए देखा तो मेरी चेहरे पर तो ख़ुशी की लहर दौड़ गई।अब मुझे अपने मोबाइल के बीमार होने का कोई दुख नहीं था…
अलका गर्ग,गुरुग्राम