मुंशी प्रेमचंद : व्यक्तित्व एवं कृतित्व – – नरेश चन्द्र उनियाल,

कथा सम्राट, उपन्यास सम्राट.. क्या-क्या नहीं कहा जाता है मुंशी प्रेमचंदजी को। मैं आज हिंदी साहित्य में उनके योगदान पर समीक्षा कर रहा हूं।
जीवन_परिचय– मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को वाराणसी के पास लमही नामक गांव में हुआ था। इनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। नबाबराय के नाम से भी वे लिखते थे। उनकी माता का नाम आनंदी देवी और पिता का नाम मुंशी अजायब राय था जो कि लमही में ही डाक मुंशी थे। मुंशी प्रेमचंद ने सन् 1898 में उन्होंने मैट्रिक पास किया और वे एक स्कूल में अध्यापक हो गये। फिर 1919 में बी. ए. पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर हो गये। वे विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे, जिसका प्रमाण है कि उन्होंने स्वयं शिवरानी देवी नामक एक बाल-विधवा से शादी की थी। मुंशी जी के तीन पुत्र थे। उनमे से अमृतराय ही लेखक बने। 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी जी का देहावसान हो गया था।
मुंशी प्रेमचंद – कृतित्व
मुंशी जी ने मात्र 13 वर्ष की उम्र से लिखना प्रारम्भ कर दिया था। उनकी पहली कहानी सौत सन् 1915 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई। तीन कहानियों का एक संग्रह सोजेवतन नाम से प्रकाशित हुआ, जो कि बहुत चर्चित रहा, इस संग्रह का विरोध हुआ, इसकी बहुत सारी प्रतियां फाड़ डाली गई, जला दी गई। इस संग्रह पर जनता को भड़काने का आरोप लगा था।
मुंशी जी ने माधुरी नामक पत्रिका का संपादन भी किया। कफन इनकी अंतिम कहानी मानी जाती है मुंशी प्रेमचंद ने लगभग 301 कहानियां लिखी जो कि मानसरोवर नाम से आठ खंडों में प्रकाशित हुई हैं।
प्रेमचंद की लेखन प्रतिभा को देखकर बांग्ल भाषा के प्रसिद्ध लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने मुंशी प्रेमचंद्र को उपन्यास सम्राट की उपाधि दी थी।
प्रेमचंद की बारह सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ —
यद्यपि प्रेमचंद्र की प्रत्येक कहानी एक से बढ़कर एक है, किंतु 301 कहानियों का विवरण नहीं लिखा जा सकता है, अतः प्रेमचंद की 12 सर्वश्रेष्ठ कहानियां इस प्रकार हैं… 1-ईदगाह, 2- दो बैलों की कथा,3- नमक का दरोगा, 4- पंच परमेश्वर, 5-परीक्षा (एक और दो) 6-पूस की रात, 7-बड़े भाई साहब, 8- बूढ़ी काकी, 9- मन्त्र (एक और दो) 10-सवा सेर गेहूं 11-गुल्ली डंडा, 12-ठाकुर का कुआं।
प्रेमचंद्र जी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यास– मुंशी प्रेमचंद जी ने लगभग एक दर्जन उपन्यास भी लिखे जिन का विवरण निम्नवत् है —
1-गोदान, 2-गबन, 3-निर्मला, 4-कर्मभूमि, 5-सेवासदन, 6-प्रेमाश्रम,7- वरदान, 8-दुर्गादास, 9-प्रतिज्ञा,10-अलंकार और 11-रामचर्चा।
प्रेमचंद्र की कुछ अन्य रचनाएं–
प्रहसन – दुराशा।
जीवनी-शेख_सादी।
नाटक – संग्राम, सृष्टि।
मुंशी प्रेमचंद जी सदैव सर्वग्राही रहे। उनको नए और पुराने सभी लोग पढ़ते हैं। मेरे पिताजी उनकी पुस्तकें मंगवाकर पढ़ते थे, उन पुस्तकों को मैंने भी पढ़ा, जो नहीं थे, उनको मंगवाकर पढ़ा। मैंने वे पुस्तकें विद्यालय पुस्तकालय को दान कर दीं। आज मेरा इंजिनियर पुत्र मुंशी प्रेमचंद को पढ़ रहा है।
मेरा (अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा) पुत्र गोदान के कई शब्दों का अर्थ मुझसे पूछता है, किन्तु वह गोदान को पढ़ रहा है। कहने का तात्पर्य है कि आज की युवा पीढ़ी भी मुंशी प्रेमचंद को उतनी ही शिद्दत से पढ़ रही है, जितनी लगन से हमारी पहले की पीढ़ी पढ़ती होंगी। इस बात का सीधा सा मतलब होता है कि हिन्दी के प्रादुर्भाव में प्रेमचंद का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान उनके प्रारम्भ काल से लेकर आज तक भी है।
अन्त में यही कहा जा सकता है कि हिन्दी के उत्थान में मुंशी प्रेमचंद का सहयोग किसी भी मायने में किसी से कम नहीं। हिन्दी को समृद्ध बनाने में उनके प्रारंभिक योगदान को देखते हुए उन्हें निश्चित रूप से साहित्य का नोबेल पुरुस्कार मिलना चाहिए था।
आज की समृद्ध हिन्दी के प्रथम सोपान मुंशी प्रेमचंद को मेरा शत शत नमन, विनम्र श्रद्धांजलि।
– नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।