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निस दिन बरसत नैन — डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

 

निस दिन बरसत नैन हमारे, जब से कृष्ण मथुरा सिधारे।
गोकुल सूना हो गया, ग्वाल बाल गोपियां हुई गई वीराने।
बिनु गोपाल के कुंज मधुबन, सब हुई गयो, सूनो सूनो।
नंद बाबा और मात यशोदा का दुख हो गयो , ऊनो दूनों।

यह गोकुल गोपाल उपासी, कृष्ण को पूजते सब बृजवासी।
अब ना भूख लगे ना प्यास, कृष्ण कन्हैया हमारे अविनाशी।
मां यशोदा रौवत, मेरे लाल को कौन देहै, भोर माखन रोटी।
नंद बाबा को कछु ना भावत, लिए फिरत वन वन में सोटी।

मधुबन तुम कत रहत‌ हरे भरे,सुंदर ठाडे क्यों लागत हो।
विरह वियोग श्याम सुंदरके, ठाडे क्यों ना जर जावत हो।
नैन सूख गए, श्याम सुंदर के ,बिरहा वियोग रोवत रोवत।
कृष्णा विरह वियोग, स्वप्न देख निशि वासर जागी सोवत।

सभी गोपियां मिलजुल कर स्वांग रचाती कृष्ण बनकर।
पीतांबर,लकुटी,संग ग्वाल बाल गोधन, कमली ओढ़ कर।
मोर पखा सिर ऊपर राखती, गुंज की माला पहरी गले में।
ये मुरली , मनोहर की, अधर न धरी, ना धरौगी अधरों में।

 

डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

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