नये सफर की ओर विधा :-लघु कथा — रमेश शर्मा

आज सरिता जब से जयपुर से दिल्ली के लिए ट्रेन में बैठी थी। उसके दिमाग में उथल पुथल चल रही थी। उसे कालेज के दिन याद आ रहे थे। जब वह जयपुर में कालेज में पढ़ा करती थी। सुंदर और होशियार होने के कारण हमेशा कालेज में लड़के और लड़कियों के बीच आकर्षण का विषय रहा करती थी। उसके साथ दिनेश भी बी एस सी कर रहा था। साधारण परिवार का साधारण सा लड़का लेकिन अपने आप में सिमटा हुआ होशियार लड़का था। उसका सिर्फ पढ़ाई में ध्यान रहता था।
मुझे इसकी यही आदत पसंद थी और मैं उसकी ओर धीरे धीरे आकर्षित हो रही थी। उससे मिलने का मौका ढूंढती थी। लेकिन दिनेश को इन सबसे कोई मतलब नहीं था। वह सिर्फ पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित रखता था।
पिछले कुछ दिनों से वह कालेज नहीं आया तो मुझे चिंता हुई कि क्या बात है वह क्यों नहीं आ रहा है। मैंने दूसरे साथियों से मालूम किया तो पता लगा वह यहाँ अकेला कमरा किराए से लेकर रहता है और बीमार चल रहा है। मैं उसका पता लेकर उससे मिलने कालेज के बाद निकल पड़ी। उसके पते पर पहुँच कर देखा तो वह बुखार में तप रहा था। मैंने पूछा डाक्टर को दिखाया क्या। वह मुझे देख कर चौंक गया। फिर सामान्य होकर बोला मेडिकल स्टोर से दवा ले आया था। लेकिन आराम नहीं है। बुखार दवा से उतर जाता है और फिर आ जाता है। पैसे की तंगी के कारण डाक्टर को नहीं दिखाया।
मैं उसे ओटो बुलाकर उसमें हमारे एक परिचित डाक्टर के पास लेकर गई। उन्होंने जांच कर कुछ टेस्ट लिखे और कुछ दवा लिख दी। उसके टेस्ट होने के बाद पता चला उसे मलेरिया था जो दवा से चार दिन में ठीक हो गया। इस दौरान मैं रोज उसका हाल पूछने के लिए मिलने जाती थी। इस तरह हमारी दोस्ती हो गई।
हमने निश्चय किया कि अपनी पढ़ाई पूरी करके समर्थ होने पर ही आगे जीवन के बारे में सोचेंगे। इस तरह दो साल गुजर गए।
पिछले हफ्ते उसका फोन आया था उसने बताया कि मैं बैंक में पी ओ के पद पर दिल्ली में नियुक्त हो गया हूँ। तुम्हारे लिए दिल्ली का आने जाने का रेलवे टिकट भेज रहा हूँ तीन दिन घूमने के लिए दिल्ली आओ।
मैं बहुत खुश थी और अब दिल्ली जा रही थी। इस दौरान मेरी भी सरकारी टीचर के रूप में नियुक्ति हो गई थी। अब हम अपने परिवार जनों से शादी की बात कर सकते हैं।
रमेश शर्मा