प्रेम की असली परिभाषा: एक सच्ची यात्रा –अनामिका दूबे “निधि”

आज के समाज में प्रेम शब्द का प्रयोग सामान्यत: केवल आकर्षण, आकर्षकता, और वासना के संदर्भ में किया जाता है। प्रेम का मतलब अब शारीरिक या यौन आकर्षण से अधिक जुड़ा हुआ प्रतीत होता है, जबकि असल में प्रेम का अर्थ कहीं गहरा और व्यापक है। प्रेम केवल एक भावना या शारीरिक इच्छा नहीं है, यह एक मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध है जो समय, परिस्थिति और गहराई से जटिल होता है। इस लेख में हम प्रेम की वास्तविक परिभाषा की खोज करेंगे और समझेंगे कि क्यों अधिकतर लोग प्रेम की असली गहराई को महसूस नहीं कर पाते हैं।
1. प्रेम और वासना का अंतर
प्रेम और वासना के बीच अंतर समझना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि आजकल दोनों शब्दों को एक ही अर्थ में उपयोग किया जाता है। वासना शारीरिक आकर्षण और तात्कालिक संतुष्टि से जुड़ी होती है, जबकि प्रेम एक गहरी और स्थायी भावना है जो आत्मा से जुड़ी होती है।
वासना एक क्षणिक उत्तेजना हो सकती है, लेकिन प्रेम समय के साथ बढ़ता है, विकसित होता है और परिपक्व होता है। प्रेम हमें अपनी इच्छाओं और संकोचों से परे जाकर दूसरों के प्रति सच्ची सहानुभूति और आत्मीयता महसूस कराता है। जब प्रेम शारीरिक आकर्षण से अधिक है, तो वह आत्म-संस्कार, सम्मान, विश्वास, और सहानुभूति की ओर अग्रसर होता है।
2. प्रेम का वास्तविक स्वरूप
प्रेम की वास्तविकता में सहनशीलता, समझदारी, और समर्पण निहित है। यह न केवल खुद को बल्कि दूसरे व्यक्ति के आंतरिक पहलुओं को स्वीकारने का नाम है। यह किसी व्यक्ति के विचारों, भावनाओं और व्यक्तित्व की गहरी समझ पैदा करता है। प्रेम का मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे व्यक्ति को अपनी इच्छाओं के अनुरूप बदलने की कोशिश करें, बल्कि इसका मतलब है कि हम उन्हें जैसा हैं, वैसा स्वीकारें और उनका सम्मान करें।
सच्चा प्रेम एक-दूसरे की गलतियों और कमियों को समझने, माफ करने, और फिर भी रिश्ते में एकजुट रहने की शक्ति देता है। जब हम सच्चे प्रेम को समझते हैं, तो हम यह सीखते हैं कि यह न केवल खुशी और सुख देने वाला होता है, बल्कि कभी-कभी यह कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करने का एक जरिया भी बनता है।
3. समाज में प्रेम की विकृत धारणा
समाज में प्रेम की जो विकृत धारणा विकसित हुई है, वह मुख्यतः मीडिया, फिल्मों और सोशल मीडिया से प्रभावित है। हमें प्रेम को लेकर जो छवि दिखाई जाती है, वह आमतौर पर एक आदर्श और परिपूर्ण रिश्ता होती है, जिसमें संघर्ष, गलतफहमी या खटास की कोई जगह नहीं होती। यह छवि वास्तविकता से कोसों दूर है। असल जीवन में प्रेम कभी परफेक्ट नहीं होता। यह दो व्यक्तियों के बीच निरंतर संवाद, समझ और सामंजस्य की प्रक्रिया है।
मीडिया अक्सर प्रेम को एक आकर्षक और रोमांटिक अवधारणा के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसमें शारीरिक आकर्षण और जुनून प्रमुख होते हैं। हालांकि, सच्चा प्रेम शारीरिक आकर्षण से कहीं अधिक है। यह किसी दूसरे व्यक्ति के आत्मा के साथ एक गहरी, स्थायी और आत्मीय जुड़ाव है, जो जीवन के हर पहलू में उसकी भलाई के लिए काम करता है।
4. प्रेम का आध्यात्मिक पहलू
प्रेम की असली परिभाषा केवल शारीरिक या मानसिक नहीं होती, बल्कि इसमें आध्यात्मिक तत्व भी होता है। जब हम प्रेम को केवल एक शारीरिक आकर्षण के रूप में देखेंगे, तो हम उसकी गहराई और असल उद्देश्य को खो देंगे। प्रेम का आध्यात्मिक दृष्टिकोण यह सिखाता है कि हम एक-दूसरे के साथ संतुलन बनाए रखें, एक-दूसरे के विकास में सहायता करें और एक-दूसरे को ऊंचाई पर उठने का मौका दें।
प्रेम एक आत्मा से जुड़ी भावना है, जो हमें दूसरों के साथ एकता महसूस कराती है। जब हम दूसरों के प्रति सच्चा प्रेम महसूस करते हैं, तो हम अपने अहंकार और सीमाओं को पार कर जाते हैं और यह समझने लगते हैं कि हम सभी एक ही ब्रह्म के अंश हैं। प्रेम से ही जीवन में वह आंतरिक शांति और संतुलन आता है, जिसे हम ढूंढते हैं।
5. प्रेम और समाज की जिम्मेदारी
समाज में प्रेम की एक और परिभाषा है जो अक्सर नजरअंदाज होती है, और वह है समाज के प्रति प्रेम। जब हम समाज के प्रति सच्चे प्रेम की बात करते हैं, तो इसका मतलब यह है कि हम न केवल अपने व्यक्तिगत रिश्तों में प्रेम का पालन करें, बल्कि हम उस प्रेम को समाज के विभिन्न पहलुओं में फैलाएं।
समाज में प्रेम का मतलब केवल एक-दूसरे से अच्छा बर्ताव करना और सहयोग करना नहीं है, बल्कि यह यह समझने का भी है कि समाज की बेहतरी के लिए हमारी जिम्मेदारी भी बनती है। इस प्रकार, प्रेम का दायरा व्यक्तिगत से बढ़कर सामूहिक और सामाजिक हो जाता है।
6. निष्कर्ष: प्रेम की असली परिभाषा
प्रेम की असली परिभाषा वह है, जो समय, धैर्य, और समर्पण से आकार लेती है। यह केवल शारीरिक आकर्षण और वासना से परे है। प्रेम वह गहरी भावना है, जो व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर काम करती है। प्रेम हमें अपने भीतर की गहराई को पहचानने, दूसरों के प्रति सम्मान और सहानुभूति का अनुभव करने और एक साथ मिलकर जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देता है।
सच्चा प्रेम कभी एक क्षणिक उत्तेजना या लुंभित आकर्षण नहीं होता, यह एक यात्रा है जो समय के साथ संजीवनी शक्ति और जीवन में स्थिरता लाती है। हमें प्रेम को एक शारीरिक प्रवृत्ति से ऊपर उठाकर उसकी वास्तविकता और गहराई को समझना चाहिए, ताकि हम उसे अपने जीवन का हिस्सा बना सकें।
अनामिका दूबे “निधि”