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प्रेम- पार्ट 2 – कविता साव

प्रेम किसी कारण बस महीनों मुक्ति से बात नहीं करता है,परन्तु मुक्ति प्रति दिन अभिवादन करती है।अचानक एक दिन प्रेम दो पंक्तियां लिखकर मुक्ति के पर्स में
छुपा देता है। जो इस प्रकार है___ घर बुलाकर किताबों भरा कमरा घुमाया उसने।
अब मुझे यकीन हुआ उसकी बेपनाह मोहब्बत पर।ऑफिस बंद होने के बाद मुक्ति पर्स खोलती है तो उसे वो कागज का टुकड़ा मिलता है और उसे पढ़कर मुक्ति का चेहरा खिल जाता है।लेकिन मुक्ति कोई जवाब नहीं देती। जवाब नहीं मिलने के कारण प्रेम फिर से लिखता है ____
हे मृगनयनी , किम अर्थम विस्मृताम,
त्वं मम सर्व प्रिय सखी असि।
अहं त्वाम बहु कामयामी।
फिर भी मुक्ति कोई जवाब नहीं देती। अब प्रेम को लगता है जैसे मुक्ति सच में रूठ गई है।प्रेम बेचैन हो उठता है और मनाने के लिए उसके पीछे चल देता है।रास्ते में रोककर उसे सॉरी कहता है।मुक्ति कहती है इसकी कोई जरूरत नहीं। वैसे मैं आपसे नाराज नहीं हूँ,और अगर हूँ भी तो इतना तो हक बनता है मेरा की मैं नाराज हो सकूं।प्रेम , ए जान, ओ मेरी जाने जिगर ऐसा मत करो।
मुक्ति, मैंने क्या किया ? जो भी किया आपने किया।दोस्ती की आपने,तोड़ी आपने,प्यार का इजहार किया आपने,चुप्पी साधी अपने।अपने दिल पर हाथ रखकर पूछिए सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।
प्रेम, ए जान सॉरी तो कह रहा हूँ।
आई प्रोमिस आगे से ऐसा कभी नहीं करूंगा। प्लीज बात तो कर लो।मुक्ति की आँखें भर आती है और वह सर नीचे किए चुपचाप आगे चल देती है।
प्रेम फिर से मुक्ति के सामने आकर कहता है,अब तो मुझे लगता कि आपने मुझे भुला दिया,कोई बात नहीं। “कुछ तुम,कुछ हम दोनों ही गुनहगार निकले।
इस प्यार की कहानी में हम दोनों ही जिम्मेदार निकले।
ईश्वर करे सदा मुस्कुराते रहें।
मुक्ति , आपको जीवन की हर खुशी मिले।
इतना कहकर दोनों अपने अपने घर चल देते हैं।

कविता साव
पश्चिम बंगाल

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