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पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव। — सुनीता तिवारी

पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव पड़ने से ही आज भारत कहाँ से कहाँ पहुँच रहा है?
कब इस सभ्यता ने आक्रमण कर दिया,भारतीय समझ ही न पाए और उसी रंग में रंगते चले गए और पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता ने पंख पसार लिए? पश्चिमी सभ्यता ने हमारी संस्कृति पर प्रहार किया और प्राचीन परम्पराओं से युवा वर्ग को विमुख कर दिया। सभ्यता को धराधायी करके रख दिया।
युवा अपने बूढ़े माँ बाप को बोझ समझने लगे और वृद्धाश्रम भेजने को सही समझने लगे।
जिस लड़की से प्रेम कर उसे घर में रखा, उसी के टुकड़े करने को सही समझ रहे हैं और लड़की भी बिना शादी के रह रही थी, कैसा कुप्रभाव है भारत ऐसा तो नहीं था कभी।
एकल परिवार,पति पत्नी बच्चों में ही अपनी दुनियां समेट कर अवसाद से घिरने लगे,तलाक का प्रचलन बढ़ा, घर टूटने लगे।
व्यवहार, खान-पान, भाषा,रीति-रिवाज, रहन-सहन आदि बदलने लगे। वैवाहिक आयोजन, सिर्फ फोटो जनिक हुए,भाव खत्म हो गए ज़मीन पर खाना, चूल्हे पर बनाना
ये सब पुरातन पंथी लगने लगा। सभी आयोजनों में मदिरा पान आवश्यक हो गया,फूहड़ नृत्य शुरू हुए,छेड़ छाड़ बलात्कार आदि बढे। कपड़े बदलने की तरह पति पत्नियां बदलने लगे,दोबारा शादियों का चलन बढ़ा।
अंग्रेजी भाषा का बोलबाला माँ से मॉम, पिता से डैड हुए,भाई ब्रो हो गए। छोटे से छोटे,बदन झांकते कपड़ों का चलन बढ़ा। वैदिक मन्त्रोपचार से होने वाली शादियाँ कोर्ट में होने लगीं।
“वसुधैव कुटुंबकम” की भावना लगभग खत्म हुई। संतान को किराए की कोख में पैसे देकर पनपाने को बहुत अच्छा मानने लगे।
भारतीय समाज में मर्यादा समाप्त ही हो गयी।

सुनीता तिवारी

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