रिश्ते और माँ — डॉ इंदु भार्गव

रिश्ते हमारे जीवन की सबसे अनमोल पूँजी होते हैं। इन्हीं रिश्तों में सबसे पवित्र, सबसे मजबूत और सबसे निस्वार्थ रिश्ता होता है — माँ का। माँ सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक पूरी भावनाओं की दुनिया है।
जब हम “रिश्ते” कहते हैं, तो हमारे मन में कई चेहरे आते हैं—पिता, भाई, बहन, दोस्त, जीवनसाथी। लेकिन माँ का रिश्ता उन सबसे अलग होता है, क्योंकि वह हमें जन्म देती है, बिना किसी अपेक्षा के अपना सर्वस्व लुटा देती है। वह हमारी पहली गुरु होती है, पहली दोस्त, और जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा।
माँ हर रिश्ते को जोड़ती है। वह परिवार की धुरी होती है जो सभी को साथ रखती है। जब हम जीवन में संघर्ष करते हैं, तो माँ की ममता, उसकी दुआएँ और उसका साथ हमारे लिए ढाल बन जाता है।
आज के समय में जब रिश्ते स्वार्थ और औपचारिकता में बंधते जा रहे हैं, माँ का रिश्ता आज भी वैसा ही सच्चा और निर्मल है। वह बिना कहे हमारे मन की बात समझ जाती है। उसकी एक मुस्कान हमें जीने की हिम्मत देती है, और उसकी आँखों में आँसू हमें भीतर तक झकझोर देते हैं।
निष्कर्षतः, माँ का रिश्ता वह नींव है जिस पर बाकी सारे रिश्ते टिके होते हैं। रिश्तों की इस दुनिया में माँ एक ऐसा आशीर्वाद है, जिसकी छाया जीवनभर सुकून देती है। इसलिए, हर रिश्ते को निभाने से पहले हमें माँ के उस अनमोल प्रेम को समझना और सहेजना चाहिए।
डॉ इंदु भार्गव