संस्मरण /नानी का घर और बच्चों की मस्ती — सुनीता तिवारी

नानी के घर जाना है सुनकर बच्चे नाचने कूदने लगते।
वहां पहंचने पर हम सबके मौसम के अनुकूल जल से मामी बड़े पीतल के थाल में पैर धुलाती,इक्के का सफर,रास्ते में उड़ती हुई पीली मिट्टी से पूरा शरीर भूरा हो जाता।
यमुना के किनारे का गाँव, रास्ता यमुना नदी के किनारे होकर जाता बहुत ही नयनाभिराम दृश्य दिखता।
बहुत मनमानी करने को मिलती न डांट का डर न और कोई बात।
मम्मी भी डांटने के पहले सौ बार सोचतीं अगर कुछ भी कहा तो नानी की प्यारी प्यारी झिड़कियां सुनने को मिलतीं।
बेचारी मम्मी भी क्या करें।
पूरी सात बच्चों की बानर सेना।
सबसे बड़ा भाई 12 वर्ष का सबसे शैतान,सबसे छोटी बहन दो वर्ष की।
इतना हंगामा होता कि पूरा घर शोर से गूंज जाता।
नानी का प्यार,दुलार,उनके इर्दगिर्द ही पूरी दुनियां सिमट जाती।
नानी भी बड़े प्यार से खिलाती,पिलातीं
और बहुत ही शानदार मनोभाव से समझाती।
शहर से जब गांव जाते तो कच्ची पक्की हवेली,पास में कुआं,मन्दिर सभी होता।
हवेली के पीछे कैथे, इमली बेर,आंवले के पेड़ दिखते।
बहुत लालच आता देखकर।
गाय,भैंस का तुरंत निकला हुआ दूध,दही,मठ्ठा आदि बहुतायत से होता।
मनचाहा खाओ,पियो,खेलो,खेत खलिहान घूमो।
सुबह खंदक में नहाना, दिन भर की मस्ती नानी की बस्ती में होती।
पास के पेड़ के नीचे मोर नाचता दिखता उसके भागने पर 2/4 ताजे पंख भी मिल जाते।
वापस जाते समय नानी का रोते हुए फिर आना और हाथ में कुछ भेंट देना भी एक जरूरी अध्याय होता।
प्यारी नानी का घर जेहन में लिए हम लोग वापस आ जाते और वहाँ की बातों को कभी न भूल पाते।
सुनीता तिवारी/स्वरचित/भोपाल