संस्मरण – टूटा बचपन — प्रेममणी एसलीना सिमरन

बात उन दिनो की है जब मैं प्राइवेट नर्सिंग होम में बतौर नर्स काम करती थी,
आज जैसे संस्मरण लिखने की बारी आई
एक घटना मेरे जेहन में उभर आई।
दूर गांव से बोलेरो में दस बारह लोग एक स्त्री को लेकर आए जो कुछ दिनो से बीमार थी,
प्राथमिक जांच कर उन्हे वार्ड में हमने शिफ्ट कर दिया।
ब्लड टेस्ट आदि का इंतजार करते रहे और कुछ इंजेक्शन दिए और बोटल चढ़ाई गई जैसा डॉक्टर ने लिखा था।
किंतु वो वास्तव में बहुत कमजोर थी उन्हे कुछ दिन पहले पीलिया और निमोनिया हुआ था।
उनके साथ उनका बेटा भी था जो काफी छोटा था।
हमे उसकी हालत बहुत खराब लगी उसका नाम
शशि था,
शशि को हमने कहा इतने दिनो तक क्यों नही आई।
बड़ी मुश्किल से उसने कहा घर का इलाज चालू था,
आस पास अस्पताल नही है।
हमे शशि की हालत बहुत गंभीर लगी डॉक्टर
और हम बीच बीच में देख ही रहे थे किंतु शायद उसका समय आ चुका था।
बोटल आधा भी नही हुआ ब्लड रिपोर्ट भी नही आ पाई किंतु
शशि ने दम तोड़ दिया।
शशि को उनके लोग जरूरी पेपर वर्क कर ले जाते रहे
हम भी बड़े दुख से सब देख रहे थे।
बच्चा दूर खड़ा देख रहा था उससे इस दौरान बात हुई थी उसने अपना नाम सोमू बताया।
बच्चे के लिए उसके पिता ने समोसा लिया था,शायद निकलते वक्त जल्दी में किसी ने कुछ नही खाया था इसलिए बच्चे के लिए पास के दुकान से समोसा लिया गया हो।
सब आपाधापी में शशि के पार्थिव शरीर को घर ले जाने की तैयारी कर रहे थे,
और सोमू प्लास्टिक में समोसा पकड़े सिसक रहा था,
किसी का ध्यान उस पर नही जा रहा था।
हमे उस पर बहुत दया आई,नितांत अकेला सा लग रहा था वो,जिसका पिता तो था किंतु वो अनाथ लग रहा था।
आज बचपन कराह रहा था,हमारे सामने एक बचपन टूट रहा था,
और हम कुछ नही कर पा रहे थे करते भी क्या??
सिसकियां तेज होने लगी जब गाड़ी स्टार्ट हुई
उसे सब भूल जा रहे थे,
मैने उन्हे आवाज लगाई
अरे बच्चे को तो कोई संभालिए
उसे कैसे भुल जा रहे आप लोग।
मुझे बोलना पड़ा जो चला गया उसे छोड़ो बच्चे को देखो।
फिर बच्चे को वे साथ ले गए।
पिता तो कम उम्र का था उसका तो कुछ समय बाद विवाह कर दिया गया होगा यही हम बाते करते रहे।
बहुत समय तक वो पल हमारे आंखो के सामने चलचित्र सा चलता रहा।
एक बचपन टूटता रहा
जाने कैसे जीवन गुजारता रहा होगा
क्या पता।
आज भी मैं भूल नही पाती वो क्षण वो प्यारा सा बचपन
सोमू का कृंद्न आज भी।
प्रेममणी एसलीना सिमरन
नागपुर महाराष्ट्र