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त्रासदीयां और सत्ताधारी — सरोज पालीवाल

कांधार , कारगिल की किस अब भी बुझी नहीं
पहलगाम का आंसू अभी सूखा नहीं
मुंबई की रात भी खामोश है।
पुलवामा कि त्रासदी आज भी मौन है।
हर बार की तरह शोर है,हर बार वादा,पर वक्त के साथ भुल कर , चुनावी नारों में
को जाते हैं।
प्रधानमंत्री चुनावी मंच पर मुस्काते हैं दुनिया देखती है दृश्य।
क्या हमारी आकांक्षाएं अब स्पष्ट नहीं है।
देश अब बाजार है,हम सिर्फ
टेक्स देने की मशीन भर है।
वोट दो,झांसे लो।
फिर भूल जाओ,यही लोकतंत्र का भविष्य बन गया है।
नेता अमीर, जनता मजबूर
विकास के वादे भर है।
अब सुरक्षा भी अपना कर्तव्य।
जब सरकार से कोई उम्मीद न
बचें, तब एक ईश्वर का ही सहारा है।