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आधुनिक शादियां :कितनी सही कितनी गलत — राजेन्द्र परिहार “सैनिक”

 

यद्यपि रील और रियल दोनों मिलते जुलते शब्द अवश्य प्रतीत होते हैं; तथापि दोनों के शब्दार्थ और भावार्थ में जमीं आसमां का अन्तर है। रील(Reel) अर्थात चलती फिरती प्रतीत होती तस्वीरों की एक श्रृंखला होती है। रियल(Real) अर्थात यथार्थ धरातल वास्तविक जीवन जो पूर्णतया कल्पनाओं से परे की सच्ची दुनिया। रील लाइफ में हकीकत कुछ भी नहीं किंतु हकीकत का दिखावा मात्र ही होता है,तो सबसे पहले तो रीयल अर्थात वास्तविकता को महत्व दीजिए। शादी के मामले तो और भी आवश्यक हो जाता है कि सबसे पहले वर वधू की आयु शादी योग्य है कि नहीं?? दूसरा दोनों के स्वभाव और तीसरी बात है, दोनों के बीच संवाद से परिलक्षित हो जाती है आजीवन संग निभाने की वचनबद्धता।शक्ल सूरत भले ही औसत हो लेकिन
दोनों की सीरत अच्छी होनी चाहिए।यह सबसे सुंदर सुयोग्य आधार होना चाहिए शादी विवाह का।

“जहां देखा मौका लगा दिया चौका” तात्पर्य यह है कि आजकल आदमी व्यवहारिक बुद्धि नहीं अपितु व्यवसायिक बुद्धि हो गया।वर या वधू के गुण अवगुणों को अनदेखा कर भव्य महलनुमा मकान एवं धन दौलत और अपनी बराबरी का रिश्ता देखता है,और यही भूल बेटे या बेटी के जीवन में कलह का कारण बन जाती है। लड़का अच्छे पद पर नौकरी करता है भव्य मकान
जायदाद और पैसे वाला है अपनी बिटिया रानी बन कर राज करेगी,सब कुछ तो देखा लेकिन ये नहीं देखा कि लड़का कहीं घमंडी तो नहीं,,अहंकारी तो नहीं,,बुरे व्यसनों में तो नहीं फंसा हुआ है, यही भूल एक लड़की या लड़के की जिंदगी भर का पछतावा बनकर रह जाती है। सौदेबाजी की शादियां अक्सर टूटती ही हैं।

माना कि शादी एक उत्सव है समारोह है, शादी में सजावट भी होगी,बैंड बाजे भी बजेंगे,नाच गान भी होगा, रीति रिवाज भी होंगे तो ज़ाहिर है कि खर्चा भी होगा ही, किंतु हमारी शादी ऐसी भव्य हो कि दुनिया देखे। सारे समाज हमारी शान के चर्चे हों,,यह सोच सबसे गलत मिथ्या और प्रलयंकारी सोच है। एक
दूसरे की देखा देखी करना और अनाप-शनाप खर्चा करना मैं समझता हूं कि समझदारों का मूर्खता भरा कदम ही है। जोश में कभी भी होश नहीं खोना चाहिए। आप कितना भी भव्य आयोजन कर लीजिए लोगों की आदत है कमी निकालने की,और वो निकालेंगे ही। दूसरी बात है कि आप कितनी भी आलीशान शादी कर दीजिए! महीने छः महीने में लोग भूल जाएंगे किसको समय है कौन याद रखता फिरेगा। इसलिए सादगीपूर्ण शादी महत्वपूर्ण होती है और चिरस्थाई भी होती है।

राजेन्द्र परिहार “सैनिक”

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