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अध्यापिका की डायरी से…… लघुकथा- मन से विकलांग ना हों कभी -ललिता भोला

 

बात २०१८ की है शिक्षक परीक्षा की तैयारी के लिए अखबार में विज्ञापन आया देख मैंने घर में‌ सभी को बताया!
बेटा और पति मेरे साथ उस कोचिंग में गये बात किया फार्म भरे गए उस दिन से मैं भी प्रतियोगी के तौर पर कोचिंग का हिस्सा बनी ! अगले दिन से मैं नियमित रूप से पढ़ने के लिए कोचिंग क्लास जाने लगी! वहीं
एक छात्र जो कि उम्र में बहुत छोटे थे शारीरिक रूप से विकलांग भी थे परंतु पढ़ने में होशियार थे मुझे मिले ! नेक दिल के थे अनिल भैया जहां सभी विद्यार्थियों में होड़ लगी थी एक दूसरे से आगे निकलने की कोई एक दूसरे से नोट्स तक शेयर नही करते थे वहीं अनिल भैया मदद करते थे!
हमेशा कहते दीदी कोई भी पुस्तक चाहिए हो तो बताना!
लाइब्रेरी में हमारी सीट आसपास ही थी एक दिन अनिल भैया ने बताया कि उनके शिक्षक ने उनके शारीरिक रूप से थोड़े बीमार रहने के कारण उन्हें बचपन में ये तक कह दिया था …तुम कभी नही पढ़ सकोगे ! परंतु मैंने हार नही मानी!
देखो दीदी मैं दसवीं पास हो गया फिर बारहवीं भी पास हो गया और आज शिक्षक की परीक्षा के लिए भी तैयारी कर रहा हूं! उनकी खुशी उनकी चेहरे से झलक रही थी एक विजयी मुस्कान! जैसे कह रहे हों तन से थोड़ा विकलांग हुआ तो क्या हुआ मन से विकलांग नही मैं !

मैंने कहा भैया आप जरूर पास होंगे ईश्वर आपको नौकरी भी देगा चलो आज हम कोचिंग के बाद मंदिर चलें ! हम तीन चार छात्र पास के मंदिर गए दर्शन किए!
परीक्षा की घड़ी आई परीक्षा परिणाम घोषित हुआ
अनिल भैया पहली लिस्ट में चयनित हो गए आज विद्यालय में शिक्षक पद पर कार्यरत हैं!

शिक्षा — हमारा शरीर स्वस्थ होते हुए भी अगर मन विकलांग है तो सही मायने में हम विकलांग है!
किसी को कम आंकने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए!

ललिता भोला जयपुर राजस्थान

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