Uncategorized

बेजुबान परिंदे क्या चाहते हैं।” — मंजू शर्मा

 

मुट्ठी भर दाना, चुल्लू भर पानी और थोड़ा-सा प्रेम
बेजुबान परिंदे हमसे सिर्फ इतना ही चाहते हैं और बदले में देते हैं हमें ढ़ेर सारी खुशियां…प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल धरोहरों से नवाजा है। उसमें से एक है परिंदे…जो भोर होने से पहले ही छेड़ देते हैं मधुर आवाज में अपना मीठा-सा संगीत। जो मन को सहज ही सुखद अहसास का अनुभव करा जाता है और उनके सुरों में मन भी आनंदित होकर नाचने लगता है। भोर की शुरुआत उनके संगीत से आरंभ हो तो सारा दिन खुशनुमा बना रहता है। दरवाजा खुलने से पहले ही उतर आते हैं रंग-बिरंगे सारे पंछी छत की मुंडेर से आंगन में… कोई चंचल मचलता-सा नजर आता है । कोई भूख से व्याकुल नज़र आता है।
तो कोई फुदक-फुदक कर मन को लुभाता है। गर्मी के मौसम में जहां पानी नजर आता है वहां मचल-मचल नहाते हैं और खुद को सुखाने के लिए चारों तरफ़ घूम जाते हैं। इन मासूम परिंदों की भांति-भांति की कलाकृतियां देख मन प्रफुल्लित हो उठता है ।
वहीं कभी-कभी ध्यान से देखने में लगता कुछ बहुत परेशान और लाचार नजर आते हैं। ऐसा लगता है जैसे
कोई गहन चिंतन में घर का बुजुर्ग…
सोच रहा हो हनन होते पर्यावरण में कहां बच्चों के लिए घोंसला बनाएं। चारों तरफ सिर्फ बिल्डिंग ही बिल्डिंग तो नज़र आती है।ये गहन विचारणीय विषय है।

जब कभी अनेक पक्षियों को बैठकर बातें करते देखती हूं तो लगता है क्या ये भी करते हैं वार्तालाप?
जब कुछ भी समझ में नहीं आता है तो अनायास ही वो कहावत मुंह से निकल जाती है।
गूंगे की भाषा गूंगा ही जाने।
इनके साथ जीवन बिताना हमें स्वस्थ वातावरण और नीरस जीवन से छुटकारा दिलाता है।
कभी ध्यान से सुना है आपने कोयल का सुबह का संगीत… वो इन दिनों अमुवा की डाल पर बैठ वंसत को बुलाती है और सीताराम की धुन में अपने आराध्य को जगाती है।
मधुर स्वर में गुंजायमान करती वो आवाज़ सीताराम सीताराम सीताराम कहती हुई एकदम शांत हो जाती है।सच में जाने कितने ही तार उलझाकर वो फुर से उड़ जाती है।
अपनी चंचलता से रंग बिरंगे पक्षी कितने करतब दिखलाते हैं। कभी-कभी दुखी मन को भी पल में खुश कर जाते हैं।
मुट्ठी भर चुग्गा और चुल्लू भर पानी का कैसा रिश्ता हम निभाते हैं ।
कैसा प्रेम है ये प्रकृति का जिसमें हम लुटते चले जाते हैं।
बिना स्वार्थ के हम इन बेजुबान पक्षियों पर कुछ पल सुबह के लुटाते हैं।
वो भी खुश और हमारी भी सुबह की शुरुआत एक नेक काम से हो जाती है।
ये पक्षी उन्मुक्त उड़ान भरकर वनों में नीम की कड़वी निबोरियाँ खाकर, खुले और विस्तृत आकाश में उड़ना चाहते हैं। इन्हें अपने शौक के लिए पिंजरें में बंद न करें।
बस थोड़ा सा प्रेम दे ये अपने आप ही नजदीक आ जाते हैं।
पेड़ की सबसे ऊँची टहनी पर झूलना और क्षितिज से मिलन करने की इच्छा रखने वाले ये परिंदे आकाश में भी
एक पंक्ति में उड़ते हुए खूबसूरत नजारा दिखाते हुए
एकसाथ रहने की इंसान को सीख भी दे जाते हैं।
पक्षियों का जीवन हमें यही सिखाता है कि हमें भी अपनी सोच को किसी दायरे में रहकर जीवन नहीं जीना चाहिए, अपितु प्रकृति ने हमारे जो भी दायरे तय किये है। उन दायरो को तोड़़कर अपने खुद के नए दायरे बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

मंजू शर्मा
उड़ीसा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!