फेसबुक के फ्रोडिए (भाग-४) संशोधित -नकली क्राउड फंडिंग –राजेश कुमार ‘राज’

एक दिन मुझे फेसबुक की तरफ से मध्य प्रदेश कैडर की एक कथित महिला आईपीएस अधिकारी का मित्रता सुझाव प्राप्त हुआ। मित्रता सुझाव को स्वीकार करने से पहले मैंने उस कथित आईपीएस अधिकारी का फेसबुक अकाउंट खंगाल डाला और उसमें जितनी भी व्यक्तिगत जानकारियां साझा की गई थीं उन सभी को गूगल पर सर्च करके देख लिया। सब कुछ सामान्य और सही लग रहा था। लिहाजा मैंने फेसबुक का सुझाव स्वीकार करते हुए उस कथित महिला आईपीएस अधिकारी को मित्रता प्रस्ताव भेज दिया। जिसे उस कथित अधिकारी ने कुछ देर बाद ही स्वीकार कर लिया। इसके पश्चात हमारी बातचीत शुरू हुई। हम दोनों ने अपनी-अपनी कुछ व्यक्तिगत जानकारियां एक दूसरे से साझा की। उस कथित आईपीएस अधिकारी ने मुझे उनके पोस्टिंग स्थल पर घूमने आने का न्योता भी दिया। चूंकि मैंने काफी लम्बे समय तक आईपीएस अधिकारियों के साथ ही काम किया था अतः उस कथित अधिकारी के साथ मैं एक प्रकार का पेशेवर जुड़ाव महसूस कर रहा था। अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी।
दूसरे दिन उस कथित अधिकारी ने क्यूआर कोड के साथ एक बीमार बच्चे की तस्वीर साझा की और उसके इलाज के लिये खुद मुझसे और मेरे अपने दोस्तों से फंडिंग कराने की अपील की। मुझे सब कुछ ठीक-ठाक लग रहा था। किसी की मदद करने का अवसर भी मिल रहा था। अतः मैंने तुरंत उस क्यूआर कोड पर 500 रुपये का भुगतान कर दिया और अपने कुछ खास मित्रों और सहकर्मियों के बीच उस अपील को प्रसारित भी कर दिया। मेरे कुछ मित्रों ने भी सहायता राशि का भुगतान उस क्यूआर कोड के माध्यम से किया। वही अपील मैंने अपनी एक महिला मित्र, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, को भी अग्रेसित की। उसने मुझे तुरन्त जवाब दिया कि जिस अकाउंट से फंडिंग की अपील भेजी गई थी वो अकांउट नकली था। मतलब था कि कोई धोखेबाज व्यक्ति उस महिला अधिकारी के नाम से नकली फेसबुक अकाउंट बना कर लोगों से गरीब बच्चे की मदद के नाम पर पैसे उगाह रहा था। लेकिन मैं अपनी दोस्त की बात मानने को तैयार ही नहीं था क्योंकि मैं उस अकांउट की डिटेल्स ऑनलाइन जांच चुका था। फलतः मेरे और मेरी दोस्त के बीच कटु बहस भी हो गई। खैर मेरी मित्र समझदार थी उसने बहस छोड़ दी। मुझे नहीं पता था कि मैं अपने कटु वचनों के लिए पछताने वाला था।
शायद तीसरे दिन उस कथित महिला अधिकारी का पुनः एक मैसेज आया जिसमें उन्होंने बताया कि उस बच्चे के आकस्मिक इलाज के लिए 5000 रुपये की सख्त ज़रूरत है। यह धनराशि फिलहाल मैं उनको भेज दूं बाद में वो मुझे वापस कर देंगी। बस यहीं से मेरा माथा ठनका और मुझे अपनी महिला मित्र की बात सच साबित होती दिखी। चूंकि मैं आईपीएस अधिकारियों के साथ काफी वर्षों तक काम कर चुका था। अतः मुझे उनकी शक्तियों और उन्हें उपलब्ध संसाधनों की पूर्ण जानकारी थी। राज्य में पदस्थ किसी भी आईपीएस अधिकारी के लिए 5000 रुपये का तुरन्त इंतजाम करना कोई बड़ी बात नहीं है। स्थानीय स्तर पर उनके इतने ज्यादा रसूख होते हैं कि ऐसी छोटी सी रकम के लिए उनका किसी के सामने गिड़गिड़ाना सामान्य व्यवहार नहीं हो सकता। अतः मेरा शक और पुख्ता हो गया कि यह कोई धोखेबाज है जो एक आईपीएस अधिकारी का स्वांग रच कर पैसा उगाह रहा है। मैने उसकी तरफ कई सवाल दाग दिये। जिनका वह ढोंगी संतोषजनक जवाब नहीं दे पायी/पाया। जब उसे लगा कि उसकी पोल खुलने वाली है तो यह ढोंगी व्यक्ति ने मुझे ब्लॉक कर दिया। वह कोई महिला आईपीएस अधिकारी नहीं थी बल्कि कोई फ्राॅड था। मुझे आज बहुत दुःख है कि उस फ्राॅड के लिए मैंने अपनी महिला मित्र को अपशब्द तक कह डाले थे और आज तक माफी भी नहीं मांग सका। इस लेख के माध्यम से मैं अपनी महिला मित्र से क्षमा मांगता हूॅं।
अब सवाल यह उठता है कि इस तरह के स्कैम्स से कैसे बचा जाये? अपने अनुभव के आधार पर मैं निम्नलिखित कुछ सुझाव दे रहा हूॅं।
1. जब भी क्राउड फंडिंग के लिए सोशल मीडिया पर आपको कोई अपील प्राप्त हो तो अपील करने वाले के बारे में पूरी जानकारी हासिल करें। अगर अपील भेजने वाला कोई शासकीय अधिकारी है तो उसके ऑफिस का पता और फोन नम्बर ऑनलाइन या ऑफलाइन प्राप्त कर उस पर बात कर यह निश्चित कर लें कि अपील भेजने वाला अकांउट असली है या नकली।
2. जिस कार्य के लिए फंड मांगा जा रहा हो उसकी पूरी जानकारी हासिल कर लें। उस कार्य को संचालित करने वाले व्यक्ति की पहचान, पता और काॅन्टैक्ट नम्बर की जानकारी मांगें और पैसा भेजने से पहले उस से बात कर मामले की सत्यता निश्चित कर लें।
3. यदि अपील किसी के इलाज के लिए की जा रही है तो मरीज का नाम, उम्र, उसके माता-पिता के नाम और मोबाइल नम्बर, उसका पता, उसका मोबाइल नम्बर, होस्पीटल का नाम, पता और फोन नम्बर, इलाज करने वाले डाक्टर का नाम और मोबाइल नम्बर तथा मरीज किस बीमारी पीड़ित है और इलाज की अनुमानित लागत कितनी है, हासिल कर लें। यदि मामला नकली या फ्रोड होगा तो अपील करने वाला या तो जानकारी देगा नहीं या टालमटोल और बहानेबाजी करेगा या कोई फर्जी कहानी गढ़ने की कोशिश करेगा जिसे आप आसानी से भेद लेंगे। क्योंकि सच को गढ़ना नहीं पड़ता वह स्वतः स्फूर्त होता है। इसके बाद मरीज या उसके अभिभावकों और डाक्टर से बात करें। अगर केस सच्चा लगता है तो ही सहायता राशि भेजें।
4. अपनी छठी इंद्रिय को सदैव जागृत रखें। शक करने की आदत डालें। सोशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी और दोस्तों पर सहज भरोसा ना करें। लोगों से सवाल करने की आदत डालें। एक बार आपने शक और सवाल करने की आदत डाल ली तो फिर कोई आपको सहज ही मूर्ख बना कर ठग नहीं सकता।
अगले अंक में किसी अन्य प्रकार के फ्रोड/स्कैम पर चर्चा करेंगे।
सावधान रहें सजग रहें सुरक्षित रहें।
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