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इश्क ना सही फिक्र है। तू ना सही तेरा जिक्र है। –डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

 

इश्क नहीं है, जानेमन,तुम्हें मुझसे, तकल्लुफ नहीं।
इश्क की फिक्र में, तेरा ज़िक्र, इश्के जुबानी चाहिए।

तुमको देखकर खुश हो गई जानेमन,
अब तो प्रेम की पींग बढ़ानी चाहिए।।

तुमको देख,दिल चमन खिल जाता है,
अब दिल की वाटिका,खिलानीचाहिए।।

बेचैन हो जाती हूं, तुमसे मिलने के लिए,
अब मिलन की घड़ी, निकलवानी चाहिए।।

सबके निकाह इश्क कुबूल हो रहे,आजकल,
हमारी भी निकाहे रस्मे, पढ़वानी चाहिए।।

रात चांदनी तुम ,मुझसे मिलने आना सनम,
चांदनी रात,मजेदार बातों में बितानी चाहिए।।

मेरी तुम्हारी आत्मा मिलन को तरसती अब,
दोनों आत्माओं में ,खुदा की रूहानी चाहिए।।

मेरी आंखों की नींदे उड़ गई है ,अब सनम,
सपनों को हमारी , दुनिया सजानी चाहिए।।

सामाजिक रिवाजों ने हमें मिलने ना दिया कभी,
इश्के दखलअंदाजी रीति रस्मों को हटानी चाहिए।

डॉ मीरा कनौजिया काव्यांशी

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