लग गई ना नज़र, — अलका गर्ग, गुरुग्राम

मैं रंग रूप में साधारण पर आकर्षक लड़की थी।इकलौती नातिन होने के कारण नानी की अत्यधिक लाड़ली थी।उन्हें हमेशा मेरा चेहरा कुम्हलाया हुआ,सूखा हुआ,उतरा हुआ ही लगता था। छींक,सर दर्द,कॉलेज में बास्केट बॉल खेलने से मेरे पाँव में दर्द,तैरने से मेरी त्वचा का रंग काला होना,मतलब कारण कुछ भी हो,उनका एक ही इलाज था मेरी नज़र उतरना।माँ को डाँट भी खूब पड़ती फूल सी बच्ची का राई,नून,मिर्ची नहीं कर सकती।
इंटर कॉलेज बास्केटबॉल टूर्नामेंट के लिये दूसरे शहर जाना था।अब नानी का तो हाल बेहाल..कितना अच्छा खेलती है जाने किस किस नज़र लगेगी।गिर गई तो..पाँव में मोच आ गई तो..
ख़ैर नानी ने तसल्ली के लिए मेरी नज़र उतार कर मेरे दुपट्टे के कोने में नून,राई,मिर्ची बाँध दी।हिदायत दी कि खोलना नहीं। बँधी गाँठ देख कर कोई न कोई ही खोल देता ,अरे ये क्या बँधा है??
टूर्नामेंट वाले दिन तो हाफ पैंट शर्ट पहननी थी तो दुपट्टा कैसे लेती।नानी फ़ोन करके बोलीं अपने ऊपर से सात बार नज़र उतार कर रूमाल में बाँध कर पॉकेट में रख लेना।मैंने ऐसा ही किया।कुछ देर बाद सीटी बजा कर खेल रोका गया।देखा पोटली मेरी पॉकेट से निकल कर कोर्ट में सबके पैरों में उछल रही है।उठा कर देख गया ,ये क्या है यहाँ कहाँ से आ गई ??
साथियों की नज़रें मेरी तरफ़ उठ गईं।मैं शर्म से गढ़ गई।वहाँ तो मेरी टीम के अलावा किसी को नहीं पता चला कि क्या था कहाँ से आया। पर लापरवाही के कारण मेरे पाँव में मोच ज़रूर आ गई।कमरे में पहुँच कर सब बहुत हँसे।सबने बहुत मज़ाक़ उड़ाया।
घर लौटने पर..नानी फिर मेरी नज़र उतारते हुए बड़बड़ाती जा रहीं थीं ..”देखा लग गई ना नज़र”…
अलका गर्ग, गुरुग्राम