लघुकथा …. “बंद हवेली”। –नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर-गुजरात)”

हमारे पड़ोस में एक अच्छी और बड़ी हवेली है। इसे एक बड़ा घर नहीं कहा जाता, क्योंकि वह घर नही एक हवेली है हवेली जो वर्षों से बंद कर दिया गया है, लेकिन आज हवेलीके द्वार खुले देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। मेंने जिज्ञासावस देखा, तो हवेली का नवीनीकरण हो रहा था मानो हवेली में जान आ गई थी।
एक बार जब मैंने पिताजी से इस बंद हवेली के बारे में पूछा, तो पिताजी ने कहा की हवेली एक शहर वाले शेठ की थी। क्या हुआ पता नही शहरवाले सेठ को अचानक व्यवसाय में भारी नुकसान हुआ और हवेली को किसीको बेच दिया। ख़रीददार रहनेको आ गए लेकिन बादमे क्या हुआ उन्हें भी हवेली बेचैनी पड़ी। इस तरहा ख़रीददार बदलते गए। एक ओर खरीददार रहनेको आये, उसके पास बहुत पैसा था। घर में दो, तीन लोग रहते थे मनमे डर का माहौल था। फिर वो भी किसीको हवेली बेचके चले गये।यह आश्चर्यजनक लगता था कि कोई इस हवेलीमे रहते क्यूँ नही। बाद में हवेली बरसो तक बंदरही। लोगोने हवेली के पास से गुजरना बंद कर दिया था। सबके मनमे भयका महोले था।
एक दिन, दादा -दादी नवनिर्मित हवेली में रहने के लिए आए। दादादादी के अच्छे स्वभाव से सभी
महोलेवाले के साथ हिलमिल गये। बच्चे, युवा और महोले के वयस्क लोग दादादादी के पास आ के बैठने लगे। दादी बच्चोको कहानीयाँ सुनाती थी।
महोलेवाले सभी लोग खुश थे। सभीके मनसे हवेली का डर निकल गया था। दादाजी, दादीजी से बात करें, यह पता चला कि केवल एक बेटा है जो कनाडा रहता है। दादादादी दो ही हैं, कोई रिश्तेदार नहीं है। अब सभी का डर चला गया था, लोग हर वख्त हवेली में आ जा रहे थे।
लेकिन, एक दिन अचानक हवेली बंद हो गई, किसीको कुछ पता नहीं था। सभी ने एक -दूसरे से पूछा, लेकिन किसी को नहीं पता था कि दादा -दादी अचानक कहा चले गये। लोगों का मानना था कि कनाडा उनके बेटे के पास गए होंगे। वास्तव में, दादा -दादी कनाडा से आए थे और ये मानके की बेटा कनाडा से भारत वापस जरूर आएगा; इसलिए कुछ समय के लिए हवेली खरीदी और पुनर्निर्मित करी थी, लेकिन बेटे ने लंबे समयतक जवाब नहीं दिया ओर भारत आया ही नही। इसलिए दादादादी बिना किसी को बताये अपने गाँव– मातृभूमि में वापस चले गये और फिर कभीं नही आये।ये सभी घटना क्रमसे आज हवेली को एक बंद और प्रेतवाधित हवेली के रूप में चर्चा होती है ओर देखा जाता है … अब जब कोई भी इस हवेली के पास से गुजरता है मनमे भय लगता है….ए .. हवेली आज बंद है, मानो बंद होने के लिए ही निर्मित की गई है।
“नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर-गुजरात)”