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लघुकथा…..”विश्वास” — नरेंद्र त्रिवेदी

 

विनय आज फिर से नौकरी के लिए एक साक्षात्कार में आया। अब तक कई कंपनियों को सरकारी कार्यालयों में नौकरी के लिए साक्षात्कार दे चुका था। विनय ने एम। ई। (इंजीनियरिंग) के साथ -साथ एम। बी। ए। फाइनेंस किया था। स्मार्ट और होनहार था, लेकिन अभी तक नौकरी नहीं मिली थी। विनय ने देखा कि आज भी 150 से अधिक उम्मीदवार साक्षात्कार के लिए आए है। थोड़ा सा नर्वस हो गया फिर सोचा जो होगा देखा जाएगा।

साक्षात्कार जल्दी से लिए गए और उन्हें बाद में सभी को वापस भेजा दिए गए। साक्षात्कार समाप्त होने के बाद विनय और रमन दोनों को रुकने के लिए कहा गया। विनय को आश्चर्य हुआ लेकिन सोचा कि अभी भी कुछ पूछने के लिए बाकी रह गया होगा।

विनय और रमन को अध्यक्ष ने अंदर बुलाया और कहा कि हमें आपके दोनों में से एक को चुनना है, हम दोपहर के भोजन के बाद आगे बात करेंगे।

रमने विनय से कहा, “आपकी पसंद अधिक है। यहां भी, मैं नौकरी नही पाउँगा। मेरी माँ बीमार है, मेरे पास दवा के पैसे नहीं हैं इसलिए मैं माँ की दवा नहीं कर सकता। मेरे पास पिता की छतरी भी नहीं है।

विनय ने जवाब नहीं दिया। दोनों को दोपहर के भोजन के बाद फिर से बुलाया गया। विनय ने पूछा “अगर हम वेतन के बारे में बात करते हैं तो आप कितना भुगतान करोंगे?”

“हम शुरुआत में 25 हजार का भुगतान करेंगे।”

“मुझे लगता है कि कम है। मेरी इच्छा 40000 हजार की है।”

“नहीं, इतना वेतन का भुगतान नहीं किया जा सकता है।तो फिर हम रमनको चुनते हैं।”

“मुझे कोई आपत्ति नहीं है।”

“विनयभाई बताओ की वास्तव में आपने एइसा क्यूँ पूछा की जिसकी वजह से मुझे नौकरी मिली गई।आपने 40 हजार का वेतन क्यूँ मांगा? क्या आप नहीं जानते थे शुरुआत में इतना वेतन नही मिलेगा?”

“हा रमनभाई आपने बोला वह सच है। मगर आपको मुझसे अधिक नौकरी की आवश्यकता है। माँ की दवा और जीने के लिए। मेरा मानना ​​है कि अच्छे कर्म का फल जरूर मिलता है।”

“बहुत बहुत धन्यवाद विनयभाई, आज आपने मुझे और मेरी माँ को एक नया जीवन दिया है।में आपका अहसान कभी नही भूलूंगा।”
“भाई?”
“हा, बा।”
“क्या हुआ, आज?” विनय ने बा को सभी बात बताई और पूछा, “बा क्या मैंने इसे सही किया?”

बा ने विनय को एक पल को देखा और कहा,” बेटा आज तुमने मेरी गोदकी लाज रखी ली, मेरा मातृत्व को सम्मानित किया और हमने जो संस्कार दिया है उसे उज्ज्वल कर दिया। भागवत गीता में श्री कृष्णा ने बताया है की “आप जैसा करोगे वैसा पाएंगे।”

“विनयभाई दवे, आपका कूरियर है।”

“आपकी कोई गलती तो नहीं है न। मैंने आज तक कुरियर किया है, लेकिन मेरा कोई कूरियर आया नही है।

“नहीं मेरी कोई गलती नही है। आज एक नही तीन कूरियर आपके नाम आये है।” विनय ने कुरियर देने वाले के पेपर पर हस्ताक्षर किए कुरियर खोला तो अच्छी कंपनी के नियुक्ति आदेश थे जहां विनय को पहले साक्षात्कार दिया था। विनय ने कवर को बा-बापूजी के पैर पे रख दिया फिर मंदिर में रख दिया और भगवान का धन्यवाद किया। आपके वहां देर हैं लेकिन कोई अंधेरा नहीं है।

उस दिन दो घरों में मिठ्ठाई बनी, विनय और रमन के घर पर।

नरेंद्र त्रिवेदी।(भावनगर-गुजरात)

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