माटी की महक ,चंपा की उड़ान — डॉ निर्मला शर्मा

गाँव के अंतिम छोर पर एक मिट्टी का घर था, जहाँ चंपा नाम की लड़की रहती थी। नाम में फूल था, लेकिन जीवन में कांटे ही कांटे। पढ़ाई में तेज़, बोलने में सीधी-सादी चंपा का सपना था कि वह एक दिन टीचर बने ताकि और लड़कियों को वह पढ़ा सके। पर किस्मत को शायद कुछ और मंज़ूर था। बीए करते-करते ही उसकी शादी कर दी गई। ससुराल में पैर रखते ही दहेज की चर्चा शुरू हो गई।
“तुम्हारे बाप ने क्या दिया है? सिलाई मशीन दी पर इसके साथ कैंची क्यों नहीं दी । तुम्हारे पिताजी से कहना कैची खरीदने के पैसे दे दे!”
पति कुछ नहीं कहता बस आँखें चुराता रहता। सास ताना देती, ननद ,देवर हँसतेरहते और चूल्हा-चौका करते-करते चंपा की आँखें हर रोज़ भीगतीं।
पर चंपा टूटी नहीं। रात के सन्नाटे में वह अपनी किताबें खोल लेती। जो सपने अधूरे थे, उन्हें सीने से लगाए रखती। मायके से मिली एक पुरानी मोबाइल में उसने यूट्यूब से पढ़ना सीखा, और पिता के द्वारा दी गई कुछ पैसों की सहायता से सामान खरीद कर सिलाई-कढ़ाई के डिज़ाइन सीखने लगी।
एक दिन गाँव में एक महिला समूह आया जो छोटे व्यवसाय को बढ़ावा देता था ।चंपा ने हिम्मत की और “माटी की महक” नाम से एक हस्तनिर्मित कपड़ों का ब्रांड शुरू किया। खेतों की मिट्टी से रंग बनाए, पुराने कपड़ों को नया रूप दिया। शुरू में लोग हँसे पर जब शहर से ऑर्डर आने लगे तो वही लोग तारीफ करने लगे।
आज चंपा एक सफल उद्यमी है। अपने गाँव की लड़कियों को ट्रेनिंग देती है। स्कूल में पढ़ाने जाती है और अपने ही घर में अब लोग उसे सम्मान से “चंपा दीदी” कहते हैं। सास, देवर, ननद जहाँ कहीं भी उसकी बात हो रही होती है, गर्दन झुकाए खड़े रहते हैं कुछ बोलते नहीं बनता।
पति भी अब उसका साथ देता है—शायद देर से, लेकिन सच्चे मन से और चंपा?
चंपा अब जान गई है कि माटी में चाहे जितनी भी सख़्ती हो, अगर बीज में जान हो तो फूल जरूर खिलता है । अगर धर्म निश्चय कर लिया हो तो हर समस्या व्यक्ति के सामने घुटने टेक देती है।
जीवन एक संघर्ष है।संघर्ष करते रहिए। संघर्ष में ही सफलता छिपी है। संघर्ष एक खोल है आवरण है, इससे लड़ते रहेंगे तो एक दिन इससे सफलता जरूर बाहर निकलेगी।डॉ निर्मला शर्मा