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मेरे कवि बनने की यात्रा — रमेश शर्मा

 

शुरू से मुझे कवियों की रचनाएँ पढ़ने का बहुत शौक था। खास तौर पर छंद, कविता, शेर शायरी आदि। उनमें से जो अच्छी लगती थीं। उनको अपने मित्रों और वाटसेप ग्रुप में फारवर्ड कर देता था। यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा।
एक बार मैंने एक गजल अपने मित्रों के एक ग्रुप में फारवर्ड की। हमारे मित्र रिटायर्ड कर्नल साहब ने उसे पढ़ी। उन्हें अच्छी लगी। उन्होंने मुझे फोन किया। शर्मा जी बहुत अच्छी गजल है। आपने लिखी है क्या। मैंने कहा नहीं।
इस तरह मेरे मन में विचार आया कि मुझे भी कुछ लिखना चाहिए। हमारे एक मित्र जोकि प्रोफेशन से सी ए हैं, और साहित्यिक ग्रुप विश्वामित्र के नाम से चलाते हैं। थोड़ा थोड़ा लिखकर उसमें डालता रहा साथ ही अन्य कवियों की रचनाएँ पढ़ता और अब और मनन करता।
उसके कुछ दिनों बाद कोरोना का लाक डाऊन आ गया। इस दौरान फेसबुक पर कई साहित्यिक संगठनों से जुड़ा। उनमें विभिन्न विषयों पर विभिन्न विधाओं में लिखा।
समय समय पर मेरी रचनाओं को सराहा गया उससे प्रोत्साहन मिला। इसतरह मेरे कवि बनने का सफर शुरू हुआ और आज भी शौकिया यह निर्बाध रुप से जारी है।

रमेश शर्मा

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