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मजदूर दिवस — सरोज चन्द्रा पालीवाल

 

ये कालजयी रचना सी,
क्या कहुं इस शिल्पी को ,
बाहर-भीतर दोनों जगह
रच रही संसार है !
ये ही जननी,पोषिता,पालनहारी है !
क्या कहूं इस ऋचा के लिए ,
विश्व रचियता की सर्वोत्तम कृति
इसे कैसे मैं श्रमिक कहुं।
इसका क्या पारिश्रमिक बांधे।
रचना है,रचियता है ,
स्वर्णिम भविष्य की ,
निर्माण की भागीदारी कर रही है!
है,मलिका, मालिक न होकर भी , कर्मठता से कार्य सम्पादन करती है
लख्तेजिगर से भी दूर नहीं है,
उसके लिए नायाब बेहतरीन
झूला है,
जिसकी कोई कीमत नहीं है।
नमन है निर्मात्री को ।
इसके जैसा कोई दूसरा नहीं ,
संपूर्ण ब्रह्मांड में ।

सरोज चंद्रा पालीवाल
२-५-२५

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