मम्मी की अटैची में बसा चूहों का परिवार — शिखा खुराना

बचपन के दिनों में हमारे घर में अलमारियां नहीं होती थीं। उनकी जगह होते थे बक्सों के ऊंचे-ऊंचे ढेर। बड़े बक्से के ऊपर छोटे, उनके ऊपर और भी छोटे — जैसे कोई घरौंदों की मीनार खड़ी हो। उस मीनार की चोटी पर विराजमान रहती थी मम्मी की एक सुंदर सी बड़ी अटैची। शादी के वक्त नानी के घर से मिली थी मम्मी को — बड़ी सजी-संवरी, मजबूत और एकदम शाही अंदाज़ में।
मम्मी उसे बड़े जतन से रखती थीं। उनकी सबसे कीमती साड़ियाँ, खास मौकों पर पहनने वाले सूट, यहाँ तक कि कुछ पुराने खत और तस्वीरें भी उसी में सहेज कर रखी जाती थीं। वो अटैची भी जैसे अपनी अहमियत पर इतराती रहती थी — बाकी बक्सों से ऊँचा दर्जा जो मिला था उसे!
समय बीतता गया, हम बड़े होते गए, और अटैची धीरे-धीरे अपने अस्तित्व की परछाइयों में सिमटती चली गई। कीमती साड़ियाँ अब अलमारी में शिफ्ट हो गईं, और अटैची ने अपना गर्व चुपचाप निगल लिया। पर किसी और की नजर उस गुमनाम हो चुकी शान पर पड़ चुकी थी — चूहों के एक पूरे कुनबे की!
उन्होंने चुपचाप नीचे से सुराख़ किया, रेशमी साड़ियों के टुकड़े-टुकड़े किए, और उसमें अपना आलीशान घर बसा लिया। क्या गद्देदार बिछावन थे, क्या रेशमी झूले! मम्मी को जब बरसों बाद किसी शादी में पहनने के लिए अपनी ‘वो वाली साड़ी’ याद आई, तो अटैची बाहर निकाली गई।
जैसे ही खोली गई, एक ऐसा तीखा भभका उठा कि पूरा घर समझ गया — चूहों ने कुछ बड़ा ‘कर’ दिखाया है! जब अंदर झाँका गया, तो नज़ारा ऐसा था मानो चूहे-चुहिया ने गृहस्थी ही बसा ली हो — और उनके साथ थे गुलाबी-नरम, आँखें बंद किए, छोटे-छोटे बच्चे। मम्मी अपनी साड़ियों की दुर्गति देख फूट-फूट कर रो रही थीं, और हम बच्चे उन नन्हे चूहों को देखकर खिलखिला रहे थे।
पापा ने गंभीरता से स्थिति को संभाला — पूरी अटैची चूहों के परिवार सहित पास के जंगल में पहुँचा दी गई। हम बच्चे देर तक उदास बैठे रहे — हमारी “चूहा फैमिली” तो चली गई थी। पर उस दिन एक बात हम बच्चों के मन में गहराई तक उतर गई — कभी-कभी पुरानी चीज़ें, जिनका हम महत्व भूल जाते हैं, किसी और के लिए सबसे अनमोल ठिकाना बन जाती हैं।
शिखा ©®